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Farmland Trees Are Disappearing From Indian Farms Agricultural System Is Changing
Farmland: भारतीय खेतों से गायब हो रहे हैं पेड़, बदल रहा है कृषि तंत्र, सैटेलाइट मैपिंग से हुआ खुलासा
गांव जंक्शन डेस्क, नई दिल्ली
Published by: Umashankar Mishra
Updated Tue, 21 May 2024 02:46 PM IST
सार
कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भारतीय खेतों में मौजूद 60 करोड़ पेड़ों का मानचित्र तैयार किया है। इससे पता चला है कि गत पांच वर्षों के दौरान भारतीय खेतों के आसपास के क्षेत्रों से 53 लाख पेड़ गायब हो गए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि कृषि पारिस्थितिक तंत्र में हो रहा यह बदलाव महत्वपूर्ण है और इसकी निगरानी पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
खेतों के आसपास से कम हो रही है पेड़ों की संख्या।
- फोटो : गांव जंक्शन
बीते पांच वर्षों में खेतों के आसपास से लगभग 53 लाख फलदार व छायादार पेड़ गायब हो गए हैं। इनमें नीम, जामुन, महुआ और कटहल जैसे पेड़ शामिल हैं। कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा भारतीय खेतों में मौजूद 60 करोड़ पेड़ों के मानचित्र से यह खुलासा हुआ है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि भारत में पेड़ों का कुल कवर और या जंगलों के बाहर मौजूद पेड़ कम हो रहे हैं, क्योंकि यह अध्ययन विशेष आकार के पेड़ों पर केंद्रित था। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) द्वारा वनों के भीतर और बाहर पाए जाने वाले पेड़ों का सर्वेक्षण किया जाता है, लेकिन, इसके आंकड़ों में पेड़ों की संख्या के बजाय भूमि कवर को दर्शाया जाता है। एफएसआई की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पेड़ों का कवरेज क्षेत्र 2019 के मुकाबले 2021 में बढ़ा है।
वर्तमान विश्लेषण भारतीय कृषि भूमि पर केंद्रित है, जिसमें वर्ष 2010 से शुरू होने वाले रुझानों का अनुमान लगाने के लिए माइक्रो उपग्रह से प्राप्त मानचित्रों और मशीन लर्निंग का उपयोग किया गया है। इस अध्ययन में, केवल बड़े व्यक्तिगत पेड़ों को ट्रैक किया गया है। इस अध्ययन में देश में प्रति हेक्टेयर पेड़ों की औसत संख्या 0.6 दर्ज की गई। इनका सबसे ज्यादा घनत्व उत्तर-पश्चिमी भारत में राजस्थान और दक्षिण-मध्य क्षेत्र में छत्तीसगढ़ में दर्ज किया गया है। यहां पेड़ों की मौजूदगी प्रति हेक्टेयर 22 तक दर्ज की गई। अध्ययन के दौरान इन पेड़ों की 10 वर्षों तक निगरानी की गई। यह अध्ययन शोध पत्रिका नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित किया गया है।
विशेष तौर पर तेलंगाना और महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर इन विशाल पेड़ों को नुकसान पहुंचा है। वर्ष 2010-11 में मैप किए गए करीब 11 फीसदी बड़े छायादार पेड़ 2018 तक गायब हो चुके थे। हालांकि, इस दौरान कई हॉटस्पॉट ऐसे भी दर्ज किए गए, जहां खेतों में मौजूद आधे (50 फीसदी) पेड़ गायब हो चुके हैं। अध्ययन से यह भी पता चला है कि वर्ष 2018 से 2022 के बीच करीब 53 लाख पेड़ खेतों से नदारद थे। यानी इस दौरान हर किमी क्षेत्र से औसतन 2.7 पेड़ नहीं पाए गए। वहीं, कुछ क्षेत्रों में तो हर किमी क्षेत्र से 50 तक पेड़ गायब हो चुके हैं। भारत का लगभग 56 फीसदी भाग कृषिभूमि और 22 फीसदी भाग वनों से ढका हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया में सबसे बड़े कृषि क्षेत्र के साथ, यहां वृक्षों के आवरण में परिवर्तन महत्वपूर्ण होते हुए भी बड़े पैमाने पर "अनदेखा" किया गया है।
पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह खेती के तौर तरीकों में बदलाव आ रहा है, वह न केवल पर्यावरण, बल्कि किसानों के लिए भी नुकसानदायक है। ऐसे ही बदलावों में, खेतों से नीम, अर्जुन और महुआ जैसे छायादार पेड़ों का गायब होना शामिल है। ये पेड़ पर्यावरण के साथ-साथ खेतों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। फिर भी इनकी निगरानी पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा। पेड़ों के साथ इनसे जुड़ी सांस्कृतिक परंपराएं भी गायब होती जा रही हैं। अब न इनकी स्थापित परंपराओं के अनुसार पूजा होती है और ना ही सावन के झूले पड़ते हैं।
अपने विश्लेषण के लिए, शोधकर्ताओं ने 2010 से 2022 तक पेड़ों की संख्या में परिवर्तन का अनुमान लगाने के लिए, दो रिपॉजिटरी - रैपिडआई और प्लैनेटस्कोप के सैटेलाइट चित्रों का उपयोग किया है। इनका रिजोल्यूशन तीन से पांच मीटर है, जिसका अर्थ है कि उपग्रह तीन से पांच मीटर की दूरी पर स्थित बड़े पेड़ों को अलग-अलग पेड़ों के रूप में "देख" सकता है। एफएसआई सेंटिनल उपग्रह के डाटा पर निर्भर करता है, जिसमें 10 मीटर का रिजोल्यूशन होता है, जिसका अर्थ है कि वे पेड़ों के अलग-अलग ब्लॉक बता सकते हैं, लेकिन उनकी अलग-अलग पहचान नहीं कर सकते।
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