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Basmati Rice: पीएयू के शोधकर्ताओं ने बासमती धान में फुट रॉट की रोकथाम के लिए पेश किया नया हथियार

गांंव जंक्शन डेस्क, लुधियाना Published by: Umashankar Mishra Updated Fri, 03 May 2024 01:58 PM IST
सार

बासमती धान की फसल में फुट रॉट या बाकाने रोग से निपटने के लिए ट्राइकोडर्मा एस्पेरेलम को पंजीकृत कराने में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के शोधकर्ताओं को सफलता मिली है। इससे किसानों को रासायनिक कीटनाशकों का एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प मिल गया है।

बासमती धान में फुट रॉट रोग के प्रबंधन में मिलेगी मदद।
बासमती धान में फुट रॉट रोग के प्रबंधन में मिलेगी मदद। - फोटो : गांव जंक्शन

विस्तार
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पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने बायो-कंट्रोल एजेंट ट्राइकोडर्मा एस्पेरेलम 2% डब्ल्यूपी को सफलतापूर्वक पंजीकृत कराकर कृषि नवाचार में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। इसका उद्देश्य पंजाब में में उगाई जाने वाली अत्यधिक आर्थिक महत्व की फसल बासमती चावल में फुट रॉट या बकाने रोग की समस्या का समाधान करना है। अब, किसान बीज और पौध के उपचार में ट्राइकोडर्मा मिलाकर फुट रॉट को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं।

पीएयू के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने इस अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों के प्रयासों की सराहना की है। उन्होंने बकाने रोग के समाधान के रूप में ट्राइकोडर्मा एस्पेरेलम को विकसित करने और इसके पंजीकरण को महत्वपू्र्ण बताया है। 

ट्राइकोडर्मा एस्पेरेलम फुट रॉट या बाकाने रोग से निपटने के लिए पर्यावरण के अनुकूल समाधान है। हानिकारक अवशेष छोड़ने के लिए जाने जाने वाले रासायनिक कीटनाशकों का यह एक स्थायी विकल्प प्रदान करता है। इसका हालिया पंजीकरण, 19 अप्रैल, 2024 को 455वीं केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (सीआईबीआरसी) की बैठक के दौरान किया गया है। 

फुट रॉट के प्रबंधन के लिए इस बायोकंट्रोल एजेंट का विकास चावल की खेती की तकनीकों में महत्वपूर्ण है, जो अधिक टिकाऊ रणनीति पर आधारित है और रासायनिक उपचार की आवश्यकता को कम करता है। यह परिवर्तन खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक मानकों के अनुरूप सुरक्षित चावल उत्पादन सुनिश्चित करता है।

अपने अनूठे स्वाद और खुशबू के लिए प्रसिद्ध बासमती चावल भारत के कृषि क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और वैश्विक बाजार में इसकी बड़ी हिस्सेदारी है। हालांकि, बढ़ते खेती के क्षेत्र ने फुट रॉट जैसी बीमारियों से उत्पन्न चुनौतियों को बढ़ा दिया है, जो कवक गिब्बरेला फुजिकुरोई या फ़्यूसेरियम मोनोलिफ़ॉर्म के कारण होती हैं। 

इस बीमारी ने ऐतिहासिक रूप से पूसा बासमती 1121 और पूसा बासमती 1509 जैसी किस्मों को मध्यम से उच्च नुकसान पहुंचाया है, जिससे मायकोटॉक्सिन संदूषण के कारण उपज और गुणवत्ता दोनों खतरे में पड़ गई हैं।

बायो-कंट्रोल एजेंट ट्राइकोडर्मा एस्पेरेलम की पंजीकरण प्रक्रियाओं के पूरा होने के साथ अब पंजाब में किसानों के बीच इसको व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। 

धान की टिकाऊ खेती गति बढ़ रही है, क्योंकि कृषि समुदाय इस अभिनव दृष्टिकोण को अपना रहा है, जो किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद है।