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Research: जंगल की आग के लिए जिम्मेदार पत्तियों से मिलेगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती

गांव जंक्शन डेस्क, पंतनगर Published by: Umashankar Mishra Updated Wed, 22 May 2024 06:36 PM IST
सार

उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर के पंतनगर में जीबी पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जंगल की आग का मुख्य कारण चीड़ की पत्तियों (पिरूल) को मूल्यवान जैव-ग्रीस और जैव-राल में बदलने की एक विधि खोजी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज जंगल की आग को रोकने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सहायक हो सकती है।

चीड़ की पत्तियों से मजबूत होगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था।
चीड़ की पत्तियों से मजबूत होगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था। - फोटो : गांव जंक्शन

विस्तार
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उत्तराखंड के पंतनगर में स्थित जीबी पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जंगल की आग का मुख्य कारण चीड़ की पत्तियों (पिरूल) को मूल्यवान जैव-ग्रीस और जैव-राल में बदलने की एक विधि खोजी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज जंगल की आग को रोकने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सहायक हो सकती है। 

कॉलेज ऑफ साइंसेज एंड ह्यूमैनिटीज के बायोकैमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर टीके भट्टाचार्य और प्रोफेसर ए.के. वर्मा के नेतृत्व में यह अध्ययन शोधकर्ता तरन्नुम जहां ने किया है। प्रोफेसर वर्मा ने बताते हैं, हमने जो बायो-ग्रीस विकसित किया है, वह बॉल बेयरिंग में घर्षण को कम करता है और जंग लगने से बचाता है। यह बायो-रेजिन प्लाइवुड को चिपकाने के लिए अत्यधिक प्रभावी है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) - अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) के तहत विकसित इस तकनीक का पेटेंट कराया गया है और इसे गुजरात स्थित ग्रीन मॉलिक्यूल्स को बेच दिया गया है। अनुसंधान निदेशक ए.एस. नैन ने कहा, इस पहल से न केवल चीड़ की पत्तियों का मूल्य बढ़ेगा, बल्कि ग्रामीणों को आय का एक नया स्रोत भी मिलेगा, जिससे जंगल की आग कम होगी। 

नैन ने कहा, उत्तराखंड में सालाना लगभग 20 लाख टन पिरूल का उत्पादन होता है। इस शोध के कारण इसके बाजार मूल्य में वृद्धि होगी और स्थानीय ग्रामीणों को आर्थिक रूप से काफी लाभ होगा। इन विधियों में विशेष रूप से फिनाइल, फॉर्मेल्डिहाइड और कास्टिक सोडा के साथ पायरोलिसिस तेल को मिलाकर बायो-रेजिन का उत्पादन शामिल है। कास्टिक सोडा और पशु वसा को पायरोलिसिस तेल के साथ मिलाकर और फिर मिश्रण को ठंडा करके ग्रीस बनाया जाता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नवाचार वन संरक्षण और पर्वतीय इलाकों की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक गेमचेंजर है। यह तकनीक टिकाऊ उत्पाद बनाने के लिए, एक ऐसी सामग्री के उपयोग पर आधारित है, जो पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास का दोहरा लाभ प्रदान करती है।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में जंगलों को आग से बचाने के लिए राज्य सरकार काफी प्रयास कर रही है। हेलीकॉप्टर के साथ ही आर्मी की भी मदद ली जा रही है। राज्य सरकार जंगल में आग की घटनाएं रोकने के लिए ग्रामीणों से चीड़ के पेड़ों से गिरने वाली पेड़ की पत्तियां (पिरूल) खरीद रही है। चीड़ के पेड़ से सूखकर गिरने वाली पत्तियों को 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदा जा रहा है। ग्रामीण जंगल में जाकर पत्तियां इकट्ठी करते हैं और सरकार को बेच रहे हैं। 

अपने इस योगदान के लिए, जहां को उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह से 'यंग वुमन साइंटिस्ट एक्सीलेंस' पुरस्कार भी मिला है।