पीला तना-छेदक कीट के प्रकोप से धान उत्पादन में 20-60 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। हैदराबाद के आनुवंशिकी वैज्ञानिकों ने देश में पहली बार चावल की एक विशेष श्रेणी विकसित की है, जो चावल के प्रमुख कीट पीला तना-छेदक के प्रति प्रतिरोधी क्षमता रखती है।
शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में उस प्रक्रिया का खुलासा किया गया है, जिससे चावल को पीला तना-छेदक के संक्रमण से बचाने में मदद मिल सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन से मिली जानकारियाों का उपयोग पीला तना-छेदक प्रतिरोधी चावल की किस्मों को विकसित करने में हो सकता है।
पीला तना-छेदक कीट धान के पौधों को अंकुर से लेकर बालियों के परिपक्व होने तक के चरण में संक्रमित कर सकता है। चावल में इस कीट के खिलाफ प्रतिरोधी गुण विकसित करने के लिए आवश्यक आणविक आधार को समझने के लिए यह अध्ययन किया गया है। शोधकर्ताओं ने पीला तना-छेदक के प्रतिरोध के लिए आवश्यक फेनीप्रोपानोइड्स जैसे जैविक अणुओं की भागीदारी का पता लगाया है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (सीएसआईआर-सीसीएमबी) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की प्रयोगशाला भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआईआरआर) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।
यह अध्ययन शोध पत्रिका स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित किया गया है। चावल की बहुत-सी भारतीय किस्में स्वाभाविक रूप से पीला तना-छेदक के प्रति प्रतिरोधी नहीं हैं। किसान इस कीट के प्रबंधन के लिए रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं।
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