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Ctcri Launches 4 Crore Research Project To Develop New Tapioca Varieties
Agricultural Research:कसावा की उन्नत किस्में विकसित करने लिए शुरू हुई नई शोध परियोजना
गांव जंक्शन डेस्क, नई दिल्ली
Published by: Umashankar Mishra
Updated Mon, 13 May 2024 06:20 PM IST
सार
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की तिरुवनंतपुरम स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान (ICAR-CTCRI) ने टैपिओका (Cassava) की नई किस्में विकसित करने के लिए एक नई परियोजना शुरू की है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि कसावा के स्टार्च का उपयोग औद्योगिक सेटअप में साबूदाना बनाने में होता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की तिरुवनंतपुरम स्थित केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान (ICAR-CTCRI) ने टैपिओका (cassava)की नई किस्में विकसित करने के लिए एक नई परियोजना शुरू की है। उल्लेखनीय है कि कसावा के स्टार्च का उपयोग औद्योगिक सेटअप में साबूदाना जैसे खाद्य उत्पाद बनाने में होता है।
केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित ICAR-CTCRI ने सीआरआईएसपीआर-कैस9 जीनोम एडिटिंग तकनीक की मदद से उद्योगों में उपयोगी मोम की प्रकृति से युक्त या उच्च-एमाइलोज स्टार्च से लैस नई टैपिओका किस्मों को विकसित करने के लिए एक नई परियोजना शुरू की है। करीब 4 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना के तहत कसावा की उन्नत किस्में विकसित करने के लिए अनुसंधान किया जाएगा।
मोम की प्रकृति वाले स्टार्च का उपयोग खाद्य उत्पादों, चिपकने वाले पदार्थों, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स में किया जाता है। भारत में उपलब्ध टैपिओका (कसावा) किस्मों की स्टार्च संरचना के कारण इसका उद्योगों में सीमित उपयोग हो पाता है दायरा है। इसमें औसतन 20 प्रतिशत एमाइलोज और 80 प्रतिशत एमाइलोपेक्टिन शामिल होता है।
सीटीसीआरआई ने कहा कि अगर हम ऐसी किस्में विकसित कर सकते हैं, जिनमें स्टार्च की संरचना को शून्य से 10 प्रतिशत एमाइलोज और 90 से 100 प्रतिशत एमाइलोपेक्टिन के रूप में बदल दिया जाता है, तो यह मोमी स्टार्च बन जाता है। जब स्टार्च की संरचना को 70 प्रतिशत एमाइलोज और 30 प्रतिशत एमाइलोपेक्टिन के रूप में बदल दिया जाता है, तो यह उच्च एमाइलोज स्टार्च बन जाता है।
सीटीसीआरआई के अनुसार, उच्च एमाइलोज स्टार्च का खाद्य उद्योग में उपयोग होता है, इसमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है और यह आंत रक्षक प्रीबायोटिक के रूप में भी कार्य करता है, आंत बैक्टीरिया को पोषण देता है, जिससे कोलन स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसका उपयोग कम कैलोरी वाले खाद्य उत्पादों और बायोफिल्म, कोटिंग्स, कपड़ा और कागज में भी किया जाता है।
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