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How Much Work Will The Farmer Factor Do In Haryana What Will Be The Impact Of The Farmers Movement On The El
Farmers' Protest: चुनाव में कितना काम करेगा किसान फैक्टर, किसान आंदोलन का क्या होगा असर?
गांव जंक्शन डेस्क, चंडीगढ़
Published by: Umashankar Mishra
Updated Thu, 18 Apr 2024 03:46 PM IST
सार
चुनावी मौसम में एक फिर किसान आंदोलन में हलचल देखने को मिली है। अंबाला-लुधियाना रेल खंड को बाधित करके किसानों ने फिर से मोर्चा खोल दिया। इन सबके बीच सवाल यह भी है कि चुनाव में किसान फैक्टर आखिर कितना काम करेगा और किसान आंदोलन चुनावी हवा के रुख को किस हद तक प्रभावित कर सकता है?
काफी समय तक शांत रहने के बाद किसान आंदोलन में एक बार फिर हलचल देखने को मिली, जब किसान नेताओं की रिहाई को लेकर 17 अप्रैल को किसानों ने एक बार फिर से मोर्चा खोल दिया। किसान पंजाब के शंभू स्टेशन के ट्रैक पर बैठ गए और किसानों के रेल रोको आंदोलन के कारण अंबाला-लुधियाना रेल खंड प्रभावित होने से यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ा।
चुनावी सरगर्मियों के बीच बड़ा सवाल यह है कि आखिर किन इलाकों में किसान आंदोलन का असर देखने को मिल सकता है? अगर हरियाणा की बात करें, तो राज्य की सात सीटों पर किसान आंदोलन का असर दिख रहा है। हिसार, सिरसा, रोहतक, सोनीपत, कुरुक्षेत्र, करनाल और अंबाला संसदीय क्षेत्रों में किसान फैक्टर का असर दिख सकता है।
मौजूदा समय में हिसार और सिरसा में खुलकर किसान संगठन सत्ताधारी पार्टी भाजपा और जजपा के नेताओं का विरोध कर रहे हैं। सत्ताधारी पार्टी के सर्वे और खुफिया एजेंसी भी इस बात की पुष्टि कर रही हैं कि हरियाणा में अभी किसान आंदोलन का असर बरकरार है। इनके अलावा शेष पांच सीटों पर भी अंदर खाते दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों को किसानों का रोष झेलना पड़ सकता है। फिलहाल, किसान आंदोलन को लेकर अभी आम किसान शांत हैं और समय आने पर उनके रुख का पता चलेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दक्षिण हरियाणा की सीटों पर किसान आंदोलन का असर कम है। इनमें गुरुग्राम, फरीदाबाद और भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीटें आती हैं। इनमें से भिवानी के क्षेत्र में कुछ असर देखने को मिल सकता है। वर्ष 2020-21 में हुए किसान आंदोलन में यहां के किसानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था, लेकिन यहां पर भारतीय किसान यूनियन का मजबूत संगठन नहीं होने के चलते अब किसान आंदोलन का इतना असर नहीं है। आंदोलन के समय मुख्य रूप से हरियाणा के जींद, कैथल, कुरुक्षेत्र, रोहतक, झज्जर, हिसार, सिरसा, सोनीपत, करनाल, अंबाला और पानीपत जिले सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।
एमएसपी कानून को लेकर किसानों का धरना जारी है।
- फोटो : गांव जंक्शन
भाकियू (टिकैत गुट) के प्रदेशाध्यक्ष रतन मान कहते हैं, लोकसभा चुनावों को लेकर भारतीय किसान यूनियन और संयुक्त किसान मोर्चा पहले से ही भाजपा और जजपा के विरोध का एलान कर चुके हैं। अब किसान किस पार्टी का साथ देंगे, इस संबंध में फैसला होना शेष है। राष्ट्रीय अध्यक्ष की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में ही यह फैसला लिया जाना है। बैठक में हरियाणा समेत अन्य राज्यों के किसान भी हिस्सा लेंगे। फिलहाल ये तय है कि किसानों की सुनवाई करने वालों को ही वोट दिया जाएगा। चुनावों के दौरान प्रदेश इकाई के पदाधिकारी सभी जिलों में जाएंगे और आंदोलन के दौरान किसानों पर हुए अत्याचार को याद दिलाएंगे, ताकि वह वोट की चोट मार सकें।
भाकियू के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा है, लोकसभा चुनावों को लेकर भाकियू की कमेटी फैसला करेगी कि आखिर संगठन के सदस्य किसको वोट और सपोर्ट करेंगे। लेकिन, ये तय है कि भाकियू के सदस्य एक ही पार्टी को वोट डालेंगे। कमेटी के फैसले से पहले अगर भाकियू का कोई पदाधिकारी किसी भी राजनीतिक दल या नेता के साथ जुड़ा, तो वह खुद को पदमुक्त समझे। चुनावों में किसान एकजुटता के साथ अपनी ताकत का अहसास कराएगा। भाजपा और जजपा की सरकार ने किसानों पर गोली और लाठियां चलाई हैं, इसलिए वह कभी भी हमारे नहीं हो सकते।
चुनाव में विपक्षी दल किसान आंदोलन को मुद्दा बना रहे हैं और किसानों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। खासकर कांग्रेस और इनेलो इस मुद्दे को लेकर मुखर हैं। हरियाणा में किसान फैक्टर का असर होने का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि किसानों के प्रति अच्छा संदेश देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झज्जर के गांव सिलानी के रहने वाले किसान रामवीर चाहर को संकल्प पत्र की पहली प्रति सौंपी थी।
हालांकि, चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका पता तो नतीजों की घोषणा के बाद ही चलेगा।
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