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PM MODI 3.0 : सामने होगी बड़ी चुनौती, इन छह सूत्रों को अपनाने से खेती-बाड़ी और किसान होंगे मजबूत

डॉ. नरेंद्र सिंह राठौड़, पूर्व कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि विवि (उदयपुर), पूर्व उप-महानिदेशक (शिक्षा), भारतीय कृषि सांख्यिकी अनुसंधान संस्थान Published by: Umashankar Mishra Updated Mon, 10 Jun 2024 03:37 PM IST
सार

सरकार को अब ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि खेतीहर लोग अपनी जमीन बेच रहे हैं, उन्हें लगता है कि खेती मुनाफे का सौदा नहीं रही। दूसरी ओर, भूमाफिया जमीन का अच्छा पैसा दे रहे हैं। इंडस्ट्री को भी जमीन चाहिए। बदलती जलवायु से भी चुनौती बढ़ी है। कृषि के मामले में हम कहीं न कहीं पीछे छूट रहे हैं। इसीलिए, सरकार को अब कृषि क्षेत्र के छह प्रमुख आयामों पर मिशन मोड में काम करना पड़ेगा।

ग्रामीण भारत की उम्मीदों को पर खरा उतरने के लिए सरकार को कड़ी चुुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
ग्रामीण भारत की उम्मीदों को पर खरा उतरने के लिए सरकार को कड़ी चुुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। - फोटो : गांव जंक्शन

विस्तार
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1. मिट्टी की सेहत के लिए मिशन मोड में हो काम

खेती, खाद्य सुरक्षा और किसानों की आमदनी में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र में मुख्य रूप से छह आयामों पर काम करने की जरूरत है। इनमें सबसे पहला आयाम मिट्टी है। कुछ समय पूर्व मिट्टी को सुरक्षित रखने के लिए, सद्गुरू जग्गी वासुदेव ने पूरे भारत में अभियान चलाया था। यह कहा गया कि अब हमारे पास 25 से 30 हार्वेस्ट ही बचे हैं। इसका मतलब है कि यदि हम साल में दो हार्वेस्ट लेते हैं तो अगले 15 साल तक ही हम अपनी मिट्टी में खेती कर पाएंगे। इसका मुख्य कारण है कि मिट्टी की सेहत पूरी तरह खराब हो गई है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) ने भी यह बात कही है। मशहूर मृदा वैज्ञानिक रतन लाल ने भी कहा है कि भारत की मिट्टी की सेहत खराब हो गई है। मिट्टी में ऑर्गेनिक कंटेंट 0.8 प्रतिशत से घटकर 0.3 प्रतिशत रह गया है। माइक्रोबियल कंटेट 3 फीसदी से घटकर 0.3 फीसदी रह गया है। हम यूरिया और नाइट्रोजन का अंधाधुंध उपयोग कर रहे हैं, पर कार्बन की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा। हमें इस क्षेत्र में काम करना पड़ेगा। उसकी रूपरेखा तैयार करनी पड़ेगी। कस्टमाइज फर्टिलाइजेशन की बात करनी पड़ेगी। बैलेंस फर्टिलाइजेशन की बात करनी पड़ेगी। एकीकृत फर्टिलाइजेशन, वाटर सॉल्युएबल फर्टिलाइजेशन और नैनो फर्टिलाइजेशन को दृढ़ता से अपनाना होगा। एक मिशन मोड में मिट्टी को सुधारने के लिए काम करना पड़ेगा, तभी खेती-बाड़ी और कृषि उत्पादकता को बनाए रखा जा सकेगा।


स्मार्ट सिंचाई में उपयोगी सेंसर युक्त मशीन।
स्मार्ट सिंचाई में उपयोगी सेंसर युक्त मशीन। - फोटो : गांव जंक्शन

2. पानी के संतुलित उपयोग और संरक्षण पर ध्यान देने की जरूरत

दूसरा आयाम पानी है। पहले हमारे यहां प्रति हेक्टेयर क्षेत्र पर 5570 क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध था, जो 100 फीट की गहराई में मिल जाता था। अब यह घटकर प्रति हेक्टेयर 1050 क्यूबिक मीटर रह गया है और जल स्तर भी 400 से 450 फीट नीचे गिर गया है। पानी कम हुआ है और पानी की गुणवत्ता में भी कमी आई है। हम कृषि में सबसे ज्यादा 80 फीसदी से अधिक पानी उपयोग करते हैं, जबकि घरेलू उपयोग 5-7 फीसदी है और 12-15 फीसदी पानी का उपयोग इंडस्ट्री में होता है। इस फील्ड में भी काफी काम करना होगा।


खेत में उर्वरक का छिड़काव करते हुए किसान।
खेत में उर्वरक का छिड़काव करते हुए किसान। - फोटो : गांव जंक्शन

3. फर्टिलाइजर और कीटनाशकों की हो राशनिंग, अंधाधुंध उपयोग पर लगे लगाम

तीसरा आयाम फर्टिलाइजर और कीटनाशकों का उपयोग है। इनके उपयोग को संतुलित करना होगा। इसके लिए, राशनिंग करनी होगी। रसायनों का खेती में अंधाधुंध उपयोग क्राइम घोषित कर देना चाहिए। वर्ष 1947 में हम प्रति हेक्टेयर में आधा किलो फर्टिलाइजर का उपयोग करते थे, जो बढ़कर 143 किलो प्रति हेक्टेयर हो गया है। जहरीली फसलें पैदा की रही हैं। इसके साथ ही, फूड सेफ्टी के बारे में भी सोचना पड़ेगा। बीजों पर मिशन मोड पर काम करना होगा। ऐसे बीज उपयोग में लाने होंगे, जो रोगों से मुक्त हों, जलवायु के प्रति लचीले हों और कम पानी, कम समय में अधिक उत्पादकता देने में सक्षम हों। हमें अपनी रिसर्च को उसी दिशा में मोड़ना होगा। अब एग्रीकल्चर 5.0 का युग है। डिजिटल टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी स्मार्ट तकनीकों के उपयोग से प्रिसिजन फार्मिंग को अपनाना होगा, जिसमें सबकुछ नपा-तुला होता है।


कस्टम हायरिंग पर मशीनीकरण को बढ़ावा देना होगा।
कस्टम हायरिंग पर मशीनीकरण को बढ़ावा देना होगा। - फोटो : गांव जंक्शन

4. मशीनीकरण से बनेगी बात, अपनाना होगा कस्टम हायरिंग सिस्टम

चौथा आयाम उपकरणों और स्मार्ट तकनीकों का उपयोग है। हमारे देश में औसत लैंडहोल्डिंग 0.8 हेक्टेयर है, चीन में लैंडहोल्डिंग 0.4 हेक्टयर है। लेकिन, वो जानते हैं कि उत्पादकता बढ़ाने, उपज की लागत कम करने के लिए मशीनीकरण ही सॉल्यूशन है। हमें अपने यहां भी यही करना होगा। मशीनीकरण में ऊर्जा दक्षता को भी देखना है, मेकाट्रॉनिक्स पर भी ध्यान देना होगा और इलेक्ट्रॉनिक्स को मैकेनिकल के साथ लिंक-अप करते हुए, फार्म एप्लीकेशन्स में कंट्रोल सिस्टम बनाने होंगे, जिससे किसानों को दिक्कत न हो। हमें यह भी समझना होगा कि किसान ये मशीनें नहीं खरीद पाएगा। इसीलिए, कस्टम हायरिंग पर मशीनीकरण को बढ़ावा देना होगा। इस तरीके से ग्रामीण युवा भी कस्टम हायरिंग सेंटर शुरू करके आमदनी प्राप्त कर सकते हैं और किसानों को कृषि यंत्र सुलभ हो सकते हैं।


जलवायु परिवर्तन का असर पर्यावरण के साथ-साथ खेती-बाड़ी और किसानों की आजीविका पर पड़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन का असर पर्यावरण के साथ-साथ खेती-बाड़ी और किसानों की आजीविका पर पड़ रहा है। - फोटो : गांव जंक्शन

5. जलवायु से लड़ने की चुनौती, मिशन मोड में मिलकर काम करें मंत्रालय

पांचवा आयाम बदलता क्लाइमेट है। हमें जलवायु के प्रति लचीली खेती के तरीके विकसित करने होंगे। अब 49 डिग्री तक तापमान पहुंच रहा है, ऐसे में जायद की फसल तो खत्म हो जाएगी। ऐसी स्थिति में, दलहन की फसल नहीं ले पाएंगे। पूरे देश में यह समस्या बढ़ी है। पानी की भी कमी है। बदलते क्लाइमेट के साथ तालमेल स्थापित करने के साथ उसका सामना करने के लिए नए तरीके विकसित करने होंगे। यह मिशन मोड में होना चाहिए। इसको लागू करने के लिए पैकेज और सब्सिडी देनी चाहिए। कृषि मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और गैर परंगरागत ऊर्जा मंत्रालयों को एकीकृत रूप से काम करना चाहिए।


महाराष्ट्र के लासलगांव में स्थित प्याज की मंडी।
महाराष्ट्र के लासलगांव में स्थित प्याज की मंडी। - फोटो : गांव जंक्शन

6. कृषि मार्केटिंग पर हो काम, किसानों को मिले मेहनत का हक

छठवां आयाम कृषि उत्पादों की मार्केटिंग से संबंधित है। अभी मेरे गांव में गेहूं 2500 रुपये प्रति बोरी बेचा जा रहा है, वही गेहूं बाजार में 3300 रुपये में बिक रहा है। 800 रुपये एक बोरी पर बिचौलिया कमा रहा है। यह लाभ किसान को मिलना चाहिए। हमें मार्केट इंटेलिजेंस शुरू करना चाहिए। एक मिशन मोड में एग्रीकल्चर कमोडिटी की ट्रेडिंग शेयर की तरह शुरू करनी चाहिए। सरकार ने ई-नाम प्लेटफॉर्म शुरू किया है। अच्छा सॉफ्टवेयर है। लेकिन, इसमें समस्या यह है कि पंजाब का गेहूं अगर दक्षिण भारत की फ्लोर मिल्स में जाता है तो परिवहन खर्च बढ़ जाता है। इन समस्याओं को तभी दूर किया जा सकता है, जब उत्पादन स्थलों के पास में ही मार्केट और प्रोसेसिंग की व्यवस्था हो जाए। मेरा गांव उदयपुर से करीब 65 किलोमीटर दूर पड़ता है, लेकिन मंडी उदयपुर में ही है। किसान 35 किलोमीटर दूर आकर अपनी फसल बेचते हैं। हम क्यों न कस्बों में भी नए अवसरों की पहचान करें, वहां की मंडियों को डेवेलप करें। ऐसा करके बिचौलियों को जाने वाला पैसा किसानों को मिल सकेगा।