द्यान्न उत्पादन 1950-51 में 5 करोड़ टन से बढ़कर 2019-20 में लगभग 30 करोड़ टन होने के साथ भारत कृषि उत्पादों का 9वां सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। एक आत्मनिर्भर खाद्य उत्पादक देश होने के साथ-साथ भारत अपने विस्तृत सार्वजनिक वितरण कार्यक्रम के जरिए 81.3 करोड़ लोगों तक सब्सिडी वाला घरेलू राशन (चावल, गेहूं या बाजरा) पहुंचाकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। सार्वजनिक वितरण के दायरे में दालों को जोड़े जाने के बाद खाद्य और पोषण सुरक्षा का कवरेज बढ़ा है। लेकिन, अनाज के पोषक तत्वों के मूल्यांकन से पता चला है कि चावल और गेहूं पिछले 50 वर्षों में 45 प्रतिशत तक पोषण मूल्य खो चुके हैं।
गेहूं और चावल का पोषण मूल्य
शोध पत्रिका नेचर में प्रकाशित ‘हिस्टॉरिकल शिफ्टिंग इन ग्रेन मिनरल डेन्सिटी ऑफ लैंडमार्क राइस एंड व्हीट कलटीवर्स रिलीज्ड ओवर दि पास्ट 50 ईयर्स इन इंडिया’ नामक अध्ययन के अनुसार, अनाज के पोषक तत्वों के विश्लेषण में आवश्यक और लाभकारी तत्वों के घनत्व में कमी दर्ज की गई है। पोषक तत्वों का स्तर कम होने के साथ-साथ अनाज में जहरीले तत्वों की सांद्रता बढ़ी है। पिछले 50 वर्षों में, जिंक और आयरन जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की सांद्रता चावल में क्रमशः 33 प्रतिशत एवं 27 प्रतिशत और गेहूं में 30 प्रतिशत और 19 प्रतिशत तक कम हो गई है। वर्ष 1960 के दशक में जारी चावल की किस्मों में जहरीले तत्व आर्सेनिक की सांद्रता 0.05 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम थी, जो वर्ष 2000 के दशक की किस्मों में बढ़कर 0.80 मिलीग्राम (1,493% वृद्धि) प्रति किलोग्राम हो गई। खाद्यान्न में एक तरफ पौष्टिकता की कमी हो रही है, वहीं दूसरी ओर ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते जा रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिकों ने 1967 के बाद के दशकों में जारी की गई चावल और गेहूं की अधिक उपज देने वाली ‘लैंडमार्क किस्मों’ यानी ‘कल्टीवर’ को विकसित किया। कल्टीवर किसी पौधे की विशेष प्रजाति को कहते हैं, जिसे विशिष्ट गुणों की दृष्टि से विकसित किया जाता है। 1960 के दशक से चावल और गेहूं की विभिन्न किस्में जारी की गईं। इस अध्ययन में, चावल की 16 किस्में और गेहूं की 18 किस्मों को शामिल किया गया। ये लोकप्रिय किस्में थीं, जो पूरे देश में अपनाई गईं थीं। लैंडमार्क किस्मों में, चावल में 2000 के दशक में और गेहूं में 2010 के दशक में पोषण मूल्य में कमी दर्ज की गई। इन दशकों के बाद अध्ययन में ऐसे ‘कल्टीवर’ नहीं पाए गए, जो ज्यादा उपज के साथ समुचित पोषण भी दे सकें। बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, कल्याणी; राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक; भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल; भारतीय कृषि सांख्यिकी अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली और राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के शोधार्थियों द्वारा यह अध्ययन किया गया है। खाद्यान्नों में पोषक तत्वों में कमी का पैटर्न भारत के साथ-साथ ब्रिटेन, अमेरिका और ईरान जैसे अन्य देशों के अध्ययनों में भी सामने आया है।
कम हो रहे कैल्शियम, जिंक, आयरन
वर्ष 1960 के दशक में जारी चावल की किस्मों में कैल्शियम, जिंक और आयरन की सांद्रता क्रमशः 337, 19.9 और 33.6 मिलीग्राम थी। गेहूं में यह मात्रा क्रमशः 492.3, 24.3 और 57.6 मिलीग्राम थी। पोषक तत्वों की सांद्रता वर्ष 2000 और 2010 के दशक की किस्मों में काफी कम हो गई। चावल की किस्मों में यह सांद्रता क्रमशः गिरकर 186.3 (45% कम), 13.4 (33% कम) और 23.5 (30% कम) हो गई। वहीं, कैल्शियम, जिंक और आयरन की सांद्रता गेहूं में क्रमशः 344.2 (30% कम), 17.6 (27% कम), 46.4 (19% कम) दर्ज की गई।
बढ़ा हानिकारक तत्वों का घनत्व
1960 के दशक में जारी चावल और गेहूं की किस्मों में सल्फर की मात्रा क्रमशः 472.7 मिलीग्राम और 518.3 मिलीग्राम थी, जो बढ़कर 653.6 (38% अधिक) और 1,744.3 (236% अधिक) हो गई। 1960 के दशक के मुकाबले चावल की किस्मों में आवश्यक फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन, जिंक, कॉपर और लाभकारी निकिल व सिलिकॉन तत्वों की सांद्रता में महत्वपूर्ण कमी देखी गई। वहीं, विषाक्त तत्वों - आर्सेनिक, क्रोमियम, बेरीयम और एल्युमिनियम में वृद्धि देखी गई। गेहूं के विश्लेषण में अधिकांश खनिज तत्वों (बेरीयम और स्ट्रोंशियम को छोड़कर) की कमी पाई गई है।
पोषण मूल्यों की कमी से असर?
शारीरिक और मानसिक विकास हमारे आहार और उससे मिलने वाले पोषण पर निर्भर करता है। आहार में पोषण मूल्य कम हैं, तो शरीर के लिए आवश्यक विटामिन, प्रोटीन और खनिज तत्व नहीं मिलने से स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और धीरे-धीरे उसकी रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती है। अध्ययन के अनुसार, भोजन में विषाक्तता स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। फॉस्फोरस, कैल्शियम, सिलिकॉन और वैनेडियम जैसे तत्व हड्डियों के निर्माण में भूमिका निभाते हैं। जिंक प्रतिरक्षा, प्रजनन और तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। आयरन हीमोग्लोबिन निर्माण में भूमिका निभाता है। मुख्य अनाजों में इनकी कमी होने से न्यूरोलॉजिकल रोग, प्रजनन संबंधी रोग और हड्डियों, मांसपेशियों व जोड़ों से संबंधित बीमारियां बढ़ सकती हैं।
पोषक तत्वों के प्रोफाइल का मूल्यांकन
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के 76.8 करोड़ कुपोषित लोगों में से 22.43 करोड़ भारत में रहते हैं। अल्प-पोषण की समस्या के केंद्र में वे खाद्य प्रणालियां जिम्मेदार हैं, जिन्हें पोषण मूल्य पर ध्यान दिए बिना उच्च पैदावार और आर्थिक मूल्य को केंद्र में रखकर बढ़ावा दिया जाता है। अनाज की कुल खनिज तत्व सामग्री (वैज्ञानिक भाषा में आयनोम) की कमी से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भारत में लोगों की अधिकांश भोजन जरूरतें चावल और गेंहू से पूरी होती हैं। अनाज ब्रीडिंग ने इन फसलों के पोषण मूल्य को कम कर दिया। शोधकर्ताओं ने 2040 तक चावल और गेहूं की पोषण गुणवत्ता में गिरावट के खतरे के प्रति आगाह किया गया है। इसीलिए, भविष्य में किसी फसल किस्म को जारी करने से पहले अनाज के पोषक तत्वों के प्रोफाइल का मूल्यांकन अधिक जरूरी हो गया है।
ऐसे बढ़ेगा फसलों का पोषण मूल्य
भारत में खाद्यान्नों की पोषण संबंधी प्रोफाइल में सुधार के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिक ऐसी प्रजातियों पर शोध कर रहे हैं, जिनमें बेहतर पोषण मूल्य के साथ-साथ हानिकारक तत्व कम से कम हों। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक अनाजों के बायोफोर्टिफिकेशन से जुड़ी केंद्र सरकार की परियोजना के तहत उच्च पोषण सामग्री वाली किस्मों का पता लगाने के लिए देशभर में जर्मप्लाज्म की खोज कर रहे हैं। बायोफोर्टिफिकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें पौध प्रजनन के जरिए फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ा दी जाती है। कृषि वैज्ञानिक उन दाता किस्मों की पहचान कर रहे हैं, जो कम से कम एक पोषक तत्व से समृद्ध हैं। इसके लिए, किसानों द्वारा संरक्षित प्रजातियों के साथ-साथ जंगली किस्मों के पोषक गुणों की प्रोफाइल भी तैयार की जा रही है।
राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक; भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद और इंदिरा गांधी कृषि विवि, रायपुर ने चावल पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत जस्ता और प्रोटीन युक्त चावल की 10 किस्में जारी की हैं। आईसीएआर के तहत अन्य संस्थानों ने गेहूं की 43 किस्में विकसित की हैं, जो प्रोटीन, आयरन और जिंक से भरपूर हैं। ईसीएआर के संस्थानों द्वारा 142 बायोफोर्टिफाइड किस्में विकसित की गई हैं। इन किस्मों को लोकप्रिय बनाने की जरूरत है।