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Jammu & Kashmir: जम्मू कश्मीर के गांवों में मूक क्रांति, 'उम्मीद योजना' से मिली तरक्की की राह

गांव जंक्शन डेस्क, जम्मू Published by: Umashankar Mishra Updated Thu, 09 May 2024 08:27 PM IST
सार

जम्मू और कश्मीर के दूरदराज के गांवों में एक मूक क्रांति चल रही है। जम्मू और कश्मीर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (जेकेआरएलएम) के माध्यम से स्वरोजगार के रास्ते तलाशने के लिए गांवों की महिलाएं अब घरों से बाहर निकल रही हैं। हालांकि, अभी भी कई ऐसे इलाके हैं, जहां जागरूकता की कमी के कारण ऐसी योजनाओं का लाभ बड़े पैमाने पर नहीं पहुंच सका है। 

उम्मीद योजना के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया जाता है।
उम्मीद योजना के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया जाता है। - फोटो : गांव जंक्शन (सांकेतिक तस्वीर)

विस्तार
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जम्मू और कश्मीर के सुदर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं 'उम्मीद योजना' - जम्मू और कश्मीर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (जेकेआरएलएम) के माध्यम से स्वरोजगार के रास्ते तलाशने के लिए अपने घरों से बाहर निकल रही हैं। इस पहल का लक्ष्य पूर्ववर्ती 125 ब्लॉकों में 66 फीसदी ग्रामीण आबादी तक पहुंचकर उन्हें स्थायी आजीविका के अवसरों से जोड़ना और उनका तब तक पोषण करना है जब तक वे गरीबी से बाहर नहीं निकल जातीं।  

पिछले साल दिसंबर में, मिशन निदेशक जेकेआरएलएम, इंदु कंवल चिब ने जेकेआरएलएम विजन 2024-30 को साझा करते हुए कहा था कि जेकेआरएलएम ने सफलतापूर्वक 7,25,000 महिलाओं को एकजुट किया है और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 87,000 स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का गठन किया है। ये एसएचजी विभिन्न क्षेत्रों जैसे- आजीविका, वित्तीय समावेशन, लैंगिक एवं सामाजिक समावेशन और अन्य संबंधित क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। 

हालांकि, कुछ ग्रामीण क्षेत्र इस महत्वपूर्ण योजना से अनभिज्ञ हैं और इसके लाभों को प्राप्त करने के लिए उनके पास जानकारी का अभाव है। ऐसा ही एक क्षेत्र है सीमावर्ती जिले पुंछ की मंडी तहसील का बैला गांव, जो जम्मू शहर से लगभग 230 किलोमीटर दूर स्थित है। यह योजना वर्ष 2016 से पास की मंडी तहसील में चालू है, लेकिन बैला गांव में इसकी पहुंच सीमित है। 

'उम्मीद योजना' के बारे में पूछे जाने पर बैला गांव की महिलाओं की प्रतिक्रिया में जागरूकता की कमी का पता चलता है। हालांकि, जब उन्हें योजना के लाभों के बारे में बताया जाता है तो वो इसके कामकाज को समझने की उत्सुकता व्यक्त करती हैं। कहना नहीं होगा कि महिलाओं को कार्यबल में शामिल करने और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में इस तरह के कार्यक्रमों के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।  

यह आश्चर्यजनक है कि मंडी तहसील से सिर्फ दो किलोमीटर दूर रहने वाले ग्रामीण इस योजना से अनजान हैं। इस तरह की स्थिति से देश के दूरदराज हिस्सों में विकास योजनाओं की पहुंच का अंतर उजागर होता है, जिसे भरने की जरूरत है। यह अंतर दूरदराज के इलाकों के लोगों को सरकारी योजनाओं के फायदों से वंचित कर देता है। कई बार तो उन्हें इसके बारे में तभी पता चलता है जब योजना बंद होने की कगार पर होती है। 

'उम्मीद योजना' जैसे कार्यक्रमों का व्यापक फायदा तभी मिल सकता है, जब इसके फायदों के बारे में जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाई जाए। उनको यह बताया जाए कि वो इस तरह की योजनाओं से कैसे जुड़ सकते हैं। ऐसी कई योजनाएं हैं, जिनके तहत स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है। अफसोस की बात है कि बैला जैसे न जाने कितने गांवों की महिलाएं इस असाधारण कार्यक्रम से बेखबर हैं। 

कई महिलाओं और पुरुषों में यह डर भी होता है कि यदि वो अपने प्रयास में असफल हो गए तो उन्हें आर्थिक दबाव झेलना पड़ सकता है। ग्रामीण योजना के तहत ऋण लेने से जुड़े संभावित परिणामों और अनिश्चितताओं के बारे में आशंका व्यक्त करते हैं। इन आशंकाओं को दूर करने की जरूरत है और उन्हें यह बताने का प्रयास करने की जरूरत है कि इस तरह की योजनाएं खतरा नहीं, बल्कि वरदान हैं। 

लोगों को यह आश्वस्त करने की आवश्यकता है कि यह पहल उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है। उन्हें इस बात से अवगत कराया जाना चाहिए कि यह योजना विशेष रूप से महिलाओं के लिए बनाई गई है और उनकी वित्तीय स्वतंत्रता की दिशा में काम करने के लिए बनाई गई है।

सरकार ने महिलाओं को इससे लाभान्वित करने के लिए इस योजना के तहत अच्छी धनराशि आवंटित की है। मंडी लोरेन क्षेत्र में कई पुरुषों और महिलाओं दोनों को इस योजना के माध्यम से अच्छे अवसर मिले हैं और वो अपने घर का भरण-पोषण आसानी से कर रहे हैं। महिलाएं इसका लाभ उठा रही हैं और प्रगति की सीढ़ियां चढ़ रही हैं। वे न केवल वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त कर रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं। इससे बैला की महिलाओं के जीवन में परिवर्तनकारी बदलाव की उम्मीद जगी है।