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West Bengal: घटते मछली स्टॉक के बीच सागर द्वीप के मछुआरों का संघर्ष, दो हजार परिवारों की आजीविका पर संकट

पी. बर्मन, कोलकाता Published by: Umashankar Mishra Updated Sat, 22 Jun 2024 08:09 PM IST
सार

कम होती समुद्री मछलियों के कारण सागर द्वीप में सूखी मछली का उत्पादन करने वाले लगभग दो हजार मछुआरा परिवारों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है। मछली दलालों और व्यापारियों द्वारा बाजार दरों से कम भुगतान किए जाने से इन मछुआरों का संकट बढ़ गया है। 

सूखी मछलियों को बोरियों में भरा जा रहा है।
सूखी मछलियों को बोरियों में भरा जा रहा है। - फोटो : पी. बर्मन

विस्तार
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कोलकाता से लगभग 100 किलोमीटर दक्षिण में स्थित सागर द्वीप पर लगभग दो हजार मछली पकड़ने वाले परिवार रहते हैं, जो छोटे पैमाने के व्यवसाय से जुड़े हैं। इन परिवारों के साथ-साथ उन पर आश्रित कम से कम 3000 से 4000 लोगों की जिंदगी मछली के व्यवसाय पर निर्भर है। झींगा, चारा मछली, क्रोकर, एंकोवी और बॉम्बे डक जैसी मछली की प्रजातियों को घास या रेत पर बिछी मच्छरदानी पर धूप में सुखाया जाता है और वे अपनी आजीविका चलाने के लिए सूखी मछली को बेचते हैं। 

सुनीता साव 44 वर्षीय मछुआरा महिला हैं, जो सूखी मछली का उत्पादन करने के लिए सुबह से शाम तक सागर द्वीप के तटीय क्षेत्र में काम करती हैं। पिछले 20 वर्षों से वह अपनी आजीविका के लिए सूखी मछली के व्यवसाय पर निर्भर हैं। लेकिन, अब उनका दावा है कि समुद्र में मछली की कमी के कारण व्यवसाय खतरे में पड़ गया है। मछली का स्टॉक पिछले सीजन का केवल 25 फीसदी ही रह गया है।

छोटे मछुआरों को उचित दाम नहीं मिलना  समस्या है। विभिन्न तरीकों से बिचौलिए उनका शोषण करते हैं। बिचौलिए उनसे बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद खरीदते हैं, लेकिन वो अधिक लाभ कमाने के लिए इसमें मिलावट करते हैं। इससे मछुआरों की बदनामी होती है। इसके अलावा, मछली व्यापारी अलग-अलग बहाने बनाकर उचित कीमत का भुगतान नहीं करते हैं। एक मछुआरा सालाना औसतन एक क्विंटल सूखी मछली का उत्पादन करता है। झींगा 100 रुपये प्रति किलोग्राम में बिकता है, जो बेहतर सौदा है। जबकि, अन्य मछलियों की कीमत 40 से 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है।

सागर द्वीप पर छोटे स्तर पर मछली व्यवसाय करने वाले रतन कुमार साव बताते हैं, मछली की आबादी में अक्सर उतार-चढ़ाव होता रहता है। यह संभव है कि किसी दिन सिर्फ पांच किलोग्राम मछली मिले, तो दूसरे दिन साठ किलोग्राम से अधिक मछली मिल सकती है। कभी-कभी बारिश, तूफान या ज्वारभाटा आने पर हमें कुछ नहीं मिलता। वहीं, सुनीता बताती हैं, मछली विक्रेता सौदे को अंतिम रूप तब देते हैं, जब मछुआरे अपनी पकड़ी हुई मछली किनारे पर लाते हैं।

खरीद की दर व्यापारियों के विवेक पर निर्धारित होती है। हमें सौदा स्वीकार करना पड़ता है क्योंकि हमने पहले ही डीलरों से पैसा उधार ले रखा होता है। हमें बिचौलियों या व्यापारियों पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि मछली बेचने के लिए लंबी दूरी तय करना हमारे लिए असंभव है। सुनीता के काम में तट के किनारे लगी नाव से कच्ची मछली का स्टॉक ले जाना शामिल है। फिर, वह धूप में सुखाने से पहले मछली की प्रजातियों के ढेर को अलग कर देती हैं। वह बताती हैं, हमारे उत्पाद किसी रसायन या विद्युत हीटर का उपयोग किए बिना प्राकृतिक रूप से सुखाए जाते हैं। 

डायमंड हार्बर में सहायक निदेशक, मत्स्य पालन (समुद्री); सुरजीत कुमार बाग के अनुसार, मछलियों की उत्पादकता में गिरावट के कई कारण हैं, जिनमें ग्लोबल वार्मिंग, प्रजनन भूमि का क्षरण और जल प्रदूषण शामिल हैं। 
मीना बीबी पिछले 6 साल से बीमार अपने ससुर के 40 वर्ष पुराने व्यवसाय को संभाल रही हैं।
मीना बीबी पिछले 6 साल से बीमार अपने ससुर के 40 वर्ष पुराने व्यवसाय को संभाल रही हैं। - फोटो : पी. बर्मन
समुदाय की चुनौतियां
रतन कुमार साव उच्च ज्वार से सिर्फ तीस मिनट पहले मछली पकड़ने के लिए अपनी मोटर बोट लेकर गहरे समुद्र में गए थे और उन्हें लगभग खाली हाथ लौटना पड़ा। वह बताते हैं, इन दिनों हम डीजल की कीमत के कारण अक्सर समुद्र में नहीं जाते हैं। श्रमिकों को भुगतान करने के बाद हम लाभ नहीं कमा सकते। मछुआरों के सामने एक समस्या यह भी है कि वे आपसी समझौते के कारण सीधे ग्राहकों को ताजा मछली नहीं बेच सकते और व्यापारियों को ही मछली बेचनी पड़ती है। अगर बाजार में सीधे अपनी मछली बेचने का मौका मिले तो मछुआरे प्रति किलोग्राम मछली पर 5-10 रुपये अतिरिक्त कमा सकते हैं। वहीं, डीलरों का दावा है कि बाजार में मांग नहीं है, इसलिए वे अच्छी कीमत नहीं दे सकते।

बोनोबिहारी पात्रा कहते हैं, डीलर्स के कर्ज के बोझ तले हम दबे रहते हैं, जिसकी भरपाई सूखी मछली बेचकर करते हैं। मछुआरों ने डीलर्स से 2 से 2.5 लाख रुपये एडवांस लिया है, इसीलिए, उनके साथ काम करना बाध्यता हो गई है। वहीं, शेख सुलेमान बताते हैं, पहले की तुलना में मछलियों की संख्या में भी गिरावट आई है। मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों द्वारा मछली के आश्रय स्थल बर्बाद हो जाते हैं। अब हमें अधिक मछलियां नहीं मिल रही हैं। मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर तल पर मछली के आवास को नुकसान पहुंचा रहे हैं, यह मछली पकड़ने का एक और दुष्प्रभाव है, जो समुद्र में मछली उत्पादन को कम करता है। समुद्री जल में मछली पकड़ने वाले 300 से अधिक ट्रॉलर विनाशकारी तरीके अपनाते हैं, जिससे छोटे मछुआरों को मछली मिलना मुश्किल हो गया है। समुद्री शैवाल और समुद्री घास को ट्रॉलर के जाल से निकाला जाता है; यह सड़ जाता है और प्रदूषण फैलाता है, जिससे मछलियां मर जाती हैं। 

दक्षिणबंगा मत्स्यजीबी फोरम और दक्षिण 24 परगना मत्स्यजीबी फोरम के सहायक सचिव, अब्दार मलिक, जो तटीय मछली श्रमिकों के अधिकारों के लिए काम करते हैं, बताते हैं, मछली पकड़ने के लिए, प्रतिबंधित जाल के उपयोग से ट्रॉलर छोटी मछलियों को पकड़कर और अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। वे मृत मछलियों को समुद्र में फेंक देते हैं, जिससे समुद्र में अतिरिक्त कचरा पैदा होता है। ऐसे में, मछली की आबादी बची नहीं रह सकती और उनकी संख्या कम होने लगती है। वहीं, छोटे मछुआरे 25 से 75 मिमी आकार की जाली का उपयोग करते हैं।

हालांकि, ट्रॉलर संचालक न केवल कानून का उल्लंघन करते हैं, बल्कि 90 मिमी की जाली, जिसे मोनोफिलामेंट नेट कहा जाता है, का उपयोग करते हैं, जो अवैध है। इसके अलावा, छह सेंटीमीटर से छोटी मछलियां नहीं पकड़ी जा सकतीं, हालांकि वे भारत में आमतौर पर पाई जाती हैं। गौरतलब है कि बांग्लादेश ने छोटी मछलियों को पकड़ना गैरकानूनी घोषित कर दिया है।

छोटे मछुआरे जहां अपनी जीविका चलाने के लिए मछली पकड़ते हैं, वहीं ट्रॉलर संचालक मुनाफा कमाने के लिए यह काम करते हैं। छोटे मछुआरे लगभग 70 मशीनीकृत नावों का उपयोग करते हैं, जबकि यहां लगभग 300 ट्रॉलर काम करते हैं। ट्रॉलर में एक समय में अधिकतम बारह आदमी बैठ सकते हैं, जबकि नावों में एक समय में तीन या चार लोग बैठ सकते हैं। 

बोनोबिहारी पात्रा अफसोस जताते हुए कहते हैं, दूसरी बड़ी चुनौती मौसम है, जो मछली की गुणवत्ता को बिगाड़ रहा है। खराब मौसम की घटनाएं बढ़ गई हैं। इसका असर मछलियों के सुखाने के काम पर भी पड़ता है। गलत तरीके से सुखाने पर मछली सड़ने लगती है, जिससे नुकसान होता है। चूंकि हम समुद्र पर निर्भर हैं, इसलिए खराब मौसम के कारण हम मछली पकड़ने नहीं जा सकते। अगर मछली पकड़ने भी जाते हैं, तो सुखाना सिरदर्द बन जाता है।  
दक्षिणबंगा मत्स्यजीबी फोरम के सहायक सचिव अब्दार मलिक सूखती मछलियों को दिखाते हुए।
दक्षिणबंगा मत्स्यजीबी फोरम के सहायक सचिव अब्दार मलिक सूखती मछलियों को दिखाते हुए। - फोटो : पी. बर्मन
मत्स्य पालन में महिलाएं
सागर सामुद्रिक महिला मत्स्यजीबी समबाय समिति की अध्यक्ष मुमताज बेगम ने बताया कि मई, 2021 में चक्रवात यास के कारण सबकुछ नष्ट होने के बाद उनका समुदाय वापस नहीं लौट सका। मछुआरों के रूप में काम करने वाली महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियां और पहल पर्याप्त नहीं हैं।

महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हमें मछलियों को रेत पर सुखाना पड़ता है, क्योंकि हमारे पास सुखाने के लिए उपयुक्त सतह का अभाव है। महिलाओं के लिए न तो ओवरहेड शेड और न ही वॉशरूम उपलब्ध हैं। गर्म मौसम में आराम करने के लिए, हमारे पास न तो सामुदायिक हॉल हैं और न ही पानी आपूर्ति की सुविधा। हमें इतनी आमदनी नहीं होती कि बच्चों को ठीक से पढ़ा सकें।  
मुमताज बेगम, सागर सामुद्रिक महिला मत्स्यजीवी सामुदायिक समिति की अध्यक्ष।
मुमताज बेगम, सागर सामुद्रिक महिला मत्स्यजीवी सामुदायिक समिति की अध्यक्ष। - फोटो : पी. बर्मन
मंच की भूमिका
सागर द्वीप में दस ब्लॉक हैं। प्रत्येक 'खोती' (मछली लैंडिंग केंद्र) में एक मत्स्य सहकारी समिति होती है, जिसका काम मछली श्रमिकों के जीवनयापन के अधिकारों की रक्षा करना है। हालांकि, उन्हें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। अब्दार मलिक कहते हैं, हमने मत्स्य पालन मंत्रालय को एक प्रतिनिधि मंडल भेजा था। पश्चिम बंगाल सरकार को भी ऑफ-सीजन में मछुआरों की आजीविका के साधनों के बारे में अपने अनुरोधों से भी अवगत कराया है, जिसे सुना गया है। राज्य सरकार द्वारा 1 अप्रैल, 2024 को 'समुद्र साथी, 2024' नामक एक नई पहल शुरू की गई है।

इसके तहत, सभी समुद्री मछुआरों को अप्रैल-जून के महीनों के दौरान 5,000 रुपये का मासिक प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। दक्षिणबंगा मत्स्यजीबी फोरम के महासचिव मिलन दास के अनुसार, हमारा लक्ष्य संभावित उपभोक्ताओं के लिए सुंदरबन के मछली व्यवसाय को उसकी मूल स्थिति में लाना है। खरीदारों तक पहुंचने के लिए, समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की मदद से इस साल की शुरुआत में नई दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे मेले में एक स्टैंड भी लगाया था।

दास कहते हैं, मछली उत्पादन में गिरावट आई है। करीब 50 फीसदी मछुआरों को नुकसान हुआ है। हमारे यहां मछली संरक्षण की कोई सुविधा नहीं है। इसलिए, हमने विभिन्न सरकारी विभागों से सूखी मछली के लिए एक संरक्षण इकाई स्थापित करने में मदद करने की अपील की है। अगर इसे संरक्षित रखा जाए, तो मछली को एक महीने बाद भी बेचा जा सकता है, जो हम फिलहाल नहीं कर पा रहे। स्थानीय मछुआरों को उनकी मछली के लिए उचित दरों का भी इंतजार है।