नई बयार: मैदानी इलाके में पैदा हो रही कश्मीर की केसर, पत्ती और फूल से भी हुई कमाई
शैलेश अरोड़ा, मैनपुरी
Published by: Umashankar Mishra
Updated Wed, 03 Jul 2024 12:23 PM IST
सार
कश्मीर में पैदा होने वाली केसर की खेती अब यूपी के मैनपुरी में भी होने लगी है। 63 साल की महिला शुभा भटनागर ने यहां केसर की खेती शुरू की है। अपनी पहली फसल से ही उन्होंने 16 लाख रुपये से अधिक मूल्य का केसर पैदा किया है।
अपने केसर उत्पादन केंद्र में शुभा भटनागर।
- फोटो : शैलेश अरोड़ा
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की रहने वाली 63 वर्षीय महिला शुभा भटनागर ने रेत में फूल उगाने जैसा काम किया है। वह सिर्फ 560 वर्गफीट के कोल्ड-रूम में केसर की खेती करती हैं। कश्मीर में केसर की खेती के लिए मिट्टी से लेकर मौसम तक सब प्राकृतिक रुप से उपलब्ध है। लेकिन, कोल्ड रूम में इसकी खेती के लिए तापमान से लेकर रोशनी तक सबकुछ नियंत्रित करना होता है। शुभा बताती हैं, केसर की खेती शुरू करने से पहले पूरे परिवार ने इस पर गहन शोध किया। वर्ष 2023 में इसकी खेती शुरू करने से पहले कश्मीर गए। वहां करीब एक हफ्ते रहकर केसर की खेती करने वाले किसानों से मिले। इसके बीज से लेकर खेती का तरीका तक सबकुछ समझा। इतना ही नहीं 10 साल का केसर की खेती का डेटा भी जुटाया।
इसमें पता चला कि इन 10 वर्षों के दौरान 2015-16 में कश्मीर में केसर उत्पादन काफी अच्छा हुआ था। तब यह पता किया कि जिस वर्ष उत्पादन अच्छा हुआ, उस वर्ष कश्मीर में क्लाइमेटिक कंडीशन यानी वातावरण व मौसम कैसा था। फिर उसी हिसाब से मैनपुरी में जो कोल्ड रूम बनवाया उसमें उतना ही तापमान नियंत्रित किया गया।
परिवार से आइडिया पर चर्चा
शुभा बताती हैं, एमए तक पढ़ाई के बाद शादी हो गई। फिर पारिवारिक जिम्मेदारियों में ही जीवन बीतने लगा। पोते-पोती भी हो गए। लेकिन, इनको खिलाने के बाद भी मेरे पास समय रहता था। सोचा कुछ ऐसा किया जाए जिससे पहचान बने और ग्रामीण महिलाओं को लाभ मिल सके। यह ध्यान में रखकर यूट्यूब व अन्य माध्यम से चीजें देखने लगे। फिर कोल्ड रूम में केसर की खेती का आइडिया मिला। इस बारे में अपने पति, बेटा-बहू से डाइनिंग टेबल पर चर्चा शुरू हुई। सभी ने इसके लिए सहमति दी। बस मई में आईडिया आया, जुलाई में कश्मीर गए और अगस्त 2023 में मैनपुरी में पहली बार केसर का बीज लगा दिया। अब तो पहली फसल भी मिल चुकी है।
शुभा कहती हैं, जब पहला फूल खिला तो उस खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं।
- फोटो : शैलेश अरोड़ा
बार-बार नहीं खरीदना पड़ता बीज
शुभा कहती हैं, जब पहला फूल खिला तो उस खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं। ऐसा लगा, सपना पूरा हो गया। पूरी फसल खिली तो पूरे परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हालांकि, यह सब इतना आसान नहीं था। काफी चुनौतीपूर्ण काम रहा। कश्मीर में जो किसान इसकी खेती करते हैं उनको प्राकृतिक संसाधन मिले हुए हैं। लेकिन, हम ऐसी जगह इसकी खेती कर रहे जहां इसके लिए वातावरण नहीं है। बल्कि एक कमरे में वैसा वातावरण बनाना है। पति का कोल्ड स्टोरेज होने की वजह से उनको यह आईडिया है कि तापमान कैसे नियंत्रित किया जाए। इसका काफी फायदा मिला। शुभा बताती हैं कि पहले साल मुनाफा कम हुआ क्योंकि बीज में काफी लागत लग गई। 600 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 2000 रुपये किलो बीज ही 12 लाख रुपये का हो गया। लेकिन, अब अगली फसल से अच्छा होगा। अब बीज खरीदना नहीं है। बल्कि जो बीज लाए थे उसी से अपने यहां बीज तैयार कर रहे हैं। इस बार बीज पर कोई लागत नहीं होगी। वह पैसा बचेगा। जब चैम्बर बढ़ाएंगे तभी कुछ और बीज खरीदना पड़ेगा।
पत्ती और फूल से भी कमाई
शुभा के बेटे अंकित अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई और मार्केटिंग स्किल्स का लाभ यहां ले रहे हैं। अंकित बताते हैं, पूरे कोल्ड रूम को काफी हद तक ऑटोमेटेड कर लिया है। मोबाइल से ही यहां तापमान और रोशनी को नियंत्रित कर लेते हैं। दिन और रात के लिए अलग तापमान रखा जाता है। इसी तरह छोटे और बड़े बीज को रोशनी भी अलग-अलग देनी होती है। इसे भी नियंत्रित करते हैं। केसर की खेती का एक फायदा यह भी है कि केसर के अलावा इसकी पत्ती, फूल सब बिकता है। कुछ बेकार नहीं जाता। इसके फूल में जो पीली पत्ती आती है उसे केसर पत्ती कहा जाता है। टेक्सटाइल इंडस्ट्री, आयुर्वेदिक दवाओं और कॉस्मेटिक्स में भी इसका इस्तेमाल होता है। यह 15 से 20 हजार रुपये किलो तक बिक जाती है। 2000 किलोग्राम जो बीज लगाया था उससे 2.2 किलोग्राम केसर मिला तो लगभग 5 किलो केसर पत्ती मिल गई। इसी तरह इसके फूल की बैगनी पत्ती भी बिकती है। हालांकि, इसे अभी बेचा नहीं है।
शुभा के परिवार के सदस्य भी काम में हाथ बंटाते हैं।
- फोटो : शैलेश अरोड़ा
परिवार के हर सदस्य की भूमिका
शुभा के पति संजीव कहते हैं, हमारा प्रयास सफल रहा है। उम्मीद से अच्छा ही उत्पादन मिला। इस साल चैंबर बढ़ा रहे हैं। अब बड़े स्केल पर केसर की खेती करेंगे। अब यह भी समझ आ गया है कि कौन-से बीज से कितना उत्पादन मिलता है। जैसे- छोटा बीज नहीं लगाना, बड़ा बीज अच्छा होता है। अगली खेती के लिए, इसी हिसाब से तैयारी चलती है। शुभा की बहू आईटी इंजीनियर हैं, ऑफिस से आने के बाद वह भी सहयोग करती हैं। घर की छोटी सदस्य यानी शुभा की पोती अवनी भी स्कूल से आने के बाद फूल से केसर निकालने के काम को पूरे उत्साह से करती है।
शुभा के यहां काम करने वाली आशा देवी कहती हैं, घर चलाने के लिए पहले हम दूसरी जगह कुछ काम करते थे। लेकिन, यहां केसर की खेती से जुड़कर बेहतर लग रहा है। साफ-सुथरा काम है। जितनी मेहनत पहले थी, उससे कम मेहनत में अब उतना कमा लेते हैं। वहीं, 19 वर्षीय सबीना कहती हैं, परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। परिवार का हाथ बंटाने के लिए कुछ काम करने की सोचते थे। यहां वह काम मिल गया, जिससे परिवार की मदद कर पा रहे हैं। गीता कहती हैं, खेत में मजदूरी करने पर कभी चिलचिलाती धूप तो काफी सर्दी या बरसात का सामना करना पड़ता है। लेकिन, केसर की यह खेती बंद जगह पर होती है। इसलिए, काम करना सुविधाजनक हो जाता है।
दो हजार किलो बीज से 2.2 किलो केसर
केसर की खेती के लिए 560 वर्ग फीट का कोल्ड रूम बनाया गया है। इसमें लकड़ी की ट्रे में इसका बीज लगाया जाता है। अगस्त, 2023 में पहली बार 2000 किलो बीज कश्मीर से लाकर लगाया था। तीन महीने बाद अक्टूबर में पहली फसल 2.2 किलोग्राम की मिली है। अभी केसर का दाम 750 रुपये प्रति ग्राम है। इस हिसाब से पहली बार में जो केसर मिला उसकी कीमत करीब 16 लाख, 50 हजार रुपये हो जाती है। इसमें 8 लाख रुपये से अधिक का केसर बिक चुका है। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह से केसर बेचते हैं। दिल्ली से इसके गिफ्ट पैक भी बनवाते हैं।
टेक्सटाइल इंडस्ट्री, आयुर्वेदिक दवाओं और कॉस्मेटिक्स में भी केसर का उपयोग होता है।
- फोटो : शैलेश अरोड़़ा
कैसे होती है केसर की खेती
केसर की खेती कैसे होती है इसके बारे में शुभा समझाती हैं। इसका बीज लहसुन की फली की तरह दिखता है। इसे बल्ब भी कहा जाता है। सबसे पहले बीज को सुखाया जाता है। कुछ घंटों के बाद उन्हें जांचना, साफ करना और पलटना होता है। प्रत्येक बीज की नमी, सड़न को देखा जाता है। उसके बाद उसकी सिल्वरिंग यानी सफाई करते हैं। तब इसे कोल्ड रूम में लकड़ी के ट्रे में लगाया जाता है। इस कोल्ड चैम्बर में तापमान से लेकर रोशनी तक सब नियंत्रित करना होता है। इसका बीज अगस्त में लगाया जाता है। अक्टूबर मध्य तक बड दिखने लगती हैं और अक्टूबर अंत तक फूल आने लगता है। इस तरह पूरी खेती तीन महीने की है। शुभा कहती हैं, सपना पूरा हो रहा है। केसर की खेती ने पहचान दिला दी है। दूसरा, ग्रामीण महिलाओं को रोजगार दे पा रहे हैं। करीब 25 महिलाओं को यहां रोजगार मिल रहा है।
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