शहद और मधुमक्खी का नाम आए, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि शाहबाद के अनवा गांव का जिक्र न आए। तहसील मुख्यालय से केवल आठ किलो मीटर दूर साढ़े तीन हज़ार की आबादी वाले गांव अनवा में पचास परिवार के लोग करोड़ो रुपए के अपने शहद के कारोबार में मिठास घोलकर कमाई में पंख लगा रहे है। अनवा गांव में पचास मधुमक्खी पालक इसी कारोबार से जुड़कर और दूसरे लोगों के लिए प्रेरणादायक बने हुए है।
आज यही शहद का कारोबार इनकी आय का जरिया भी बना हुआ है। इस कारोबार में औसतन एक मधु मक्खी पालक के पास आज के समय में सौ बक्सों से लेकर पांच सौ तक मधुमक्खी पालने वाले वाले छत्ते के बक्से है। एक बक्से से लगभग दस से पच्चीस किलो तक शहद निकलता है। मधुमक्खी पालक बताते है कि मधु मक्खियों को साल में तीन बार प्रवास कराना ज़रूरी होता है। प्रथम प्रवास अक्टूबर माह से लेकर होली तक होता है। इस समय सरसों की फसल या यूकेलिप्टिस के नए कल्ले (नया पौधा) खिल रहे होते है।
उसके बाद मार्च-अप्रैल से लेकर जुलाई में लीची के बागान में फूल खिलते होते है, और मधुमक्खी इन फूलों से निक टेम करके शहद बनाती है, और अपना पेट भर के जीवित रहती है। इसके बाद जुलाई और अगस्त माह में मधुमक्खियों को एसी जगह ले जाया जाता है। जहां पर मधु मक्खी शहद आसानी से बना ले। इस गांव से सलाना लगभग तीन से चार करोड़ रुपए के शहद का उत्पादन कारोबारी कर रहे है। अनवा गांव एवं अन्य गांव से शहद का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। लगभग सलाना सौ टन से अधिक शहद का उत्पादन, देश के राजस्थान, चंडीगड़, दिल्ली, पंजाब, लुधियाना, सहित उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में किया जाता है। शहद बिकने की शुरूआत तीन सौ रुपए किलो से शुरू होकर, और हजार रुपए किलो तक अलग-अलग क्षेत्रों में शहद बिकता है।
क्या कहते हैं मधुमक्खी पालक?
कारोबारी एवं मधुमक्खी पालक जगदीश कुमार मौर्य कहते हैं, 'मेरे पास एक हज़ार मधुमक्खी पालक के बक्से थे। पिछली बरसात में अधिकतर बक्सों की मधु मक्खियां मर गई थी। अब मेरे पास 350 मधु मक्खी के बक्से है। मैंने मात्र 20 हज़ार रुपए से 18 वर्ष पूर्व शहद के कारोबार की शुरुआत की थी। कई लोगों को प्रशिक्षण देकर इस कारोबार से जोड़ चुका। अब अपनी खुद की शहद की पेकिंग भी कर रहा हूं। मेरा सलाना कारोबार करीब दो करोड़ रुपए का है। फिलहाल में मेरे मधु मक्खी के के बक्से जम्मू एड कश्मीर में रखे हुए है। मै सरकार की ओर से कई बार लोगों को प्रशिक्षण भी दे चूका हूं।'
कारोबारी एवं मधुमक्खी पालक नितिन बताते हैं कि वह पिछले आठ साल से इस शहद के कारोबार से जुड़े हैं। कई दोस्तों और भाइयों को भी इस कारोबार के साथ से जोड़ लिया है। अच्छा मुनाफा हो रहा है। पैकिंग करके शहद का उत्पादन कर रहे हैं।
पालक अमित कहते हैं, 'मैं पहले निजी कंपनी में नौकरी करता था। लेकिन घर से काफी दूर था। मेरे गांव अनवा में शहद का कारोबार लंबे समय से हो रहा है। इसलिए मैं भी अन्य कारोबारियों से प्रेरित हुआ और नोकरी छोड़कर शहद के कारोबार और मधु मक्खी पालन का काम शुरू क्र दिया था।'
मधु की बिक्री करते गांव के लोग।
- फोटो : गांव जंक्शन
इस तरह से होती है असली-नकली शहद की पहचान
नकली शहद गर्म और ठंडे पानी में घुलने लगेगा, लेकिन असली शहद नहीं घुलेगा, जब तक उसे चलाएंगे नहीं। मिटटी पर असली शहद की बूंद डालते ही दाना के आकार में बना रहेगा। जबकि नकली शहद मिटटी पर फैलने लगेगा। कपड़े पर नकली शहद तर हो जाएगा और असली शहद कपड़े पर तर नहीं होगा।
इस तरह से बनता है
शहद मधु मक्खी पालक बताते है कि, मधुमक्खी के छत्ते में दो खंड होते है। पहला खंड, मधु खंड – (इसके कमेरी यानी काम करने वाली मक्खी) नामक मधुमक्खी दिनों रात शहद बनाने का काम करती है। जिससे इस खंड से मधुमक्खी पालक शहद निकालते है।
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