BASMATI RICE: दूर-दूर तक फैल रही मेरठ के बासमती की खुशबू, बासमती के बीज उत्पादन से सालाना टर्नओवर चार करोड़
शैलेश अरोड़ा, मेरठ
Published by: shreya singh
Updated Tue, 23 Apr 2024 03:15 PM IST
सार
यह कहानी मेरठ के एक किसान के बेटे की है, जिसने परिजनों के कहने पर लीक पर चलते हुए फार्मा की पढ़ाई करने के बाद नौकरी शुरू की। लेकिन, मन खेती में रमा। बासमती धान के बीज उत्पादन से आज उनका सालाना टर्नओवर करीब चार करोड़ रुपये है।
विनोद सैनी ने बीज उत्पादन में एक मिसाल कायम की है और वह दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।
- फोटो : गांव जंक्शन
मेरठ की सरधना तहसील निवासी विनोद सैनी ने परिजनों के कहने पर एमएससी फार्मास्यूटिकल्स की पढ़ाई की और फिर केमिस्ट के तौर पर नौकरी की। लेकिन, उनका मन नौकरी में नहीं लगा और वह खेती-बाड़ी के पारिवारिक पेशे में आ गए। उन्होंने अपनी लगन और कड़ी मेहनत से साबित कर दिखाया कि कृषि घाटे का नहीं, बल्कि मुनाफे का सौदा है। विनोद सैनी बताते हैं, कई बार किसान जितनी लागत खेत में लगाते हैं उसके हिसाब से उनको लाभ नहीं मिल पाता। इसीलिए, किसान अपनी नई पीढ़ी को किसानी से दूर रखना चाहते हैं। ऐसा ही मेरे साथ हुआ। लेकिन, मैंने अपने एक साथी के साथ मिलकर औषधीय पौधों की खेती करने का फैसला किया और नौकरी छोड़कर वापस गांव लौट आया। सबसे पहले वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद तैयार करना शुरू किया। इस बीच मित्र अपने परिजनों के दबाव में खेती छोड़कर चला गया। ऐसे में, मेरी चुनौती बढ़ गई।
इस बीच मेरठ के मोदीपुरम स्थित बासमती निर्यात संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा से मुलाकात हुई। उन लोगों को वर्मी कम्पोस्ट की जरूरत थी। उनको हमारे यहां की खाद पसंद आई तो उसे खरीदना शुरू कर दिया। उनके संपर्क में रहकर बासमती धान की खेती के बारे में जाना। उनके सुझाव से पहली बार 11 बीघे में धान की खेती की। वैज्ञानिकों के कहने पर धान की जो किस्म लगाई, उससे एक हेक्टेयर में 60 क्विंटल औसत उत्पादन की बात कही जा रही थी। जबकि, हमारे यहां प्रति हेक्टेयर 72 क्विंटल उत्पादन हुआ। यह रिकॉर्ड उत्पादन था। मेरठ, वैसे तो गन्ना बेल्ट है। लेकिन, अब समझ आ चुका था कि गन्ने से अधिक मुनाफा बासमती में है। अन्य किसानों को साथ लेकर अब हम 200 बीघे में धान लगवा रहे हैं।
सालाना 4 करोड़ रुपये का टर्नओवर
विनोद सैनी बताते हैं, सबसे पहले साल 2006-07 में डॉ. रितेश के कहने पर उनके संस्थान के लिए ही बीज तैयार करने में मदद की। इसमें अतिरिक्त मुनाफा होने लगा। फिर, वर्ष 2008 मैं वैज्ञानिकों की सलाह से अपने लिए बीज तैयार करना शुरू कर दिया और अपना ब्रांड ले आए। वर्ष 2008 में पहली बार बाजार में बेचने के लिए कुल 40 क्विंटल बीज तैयार किया, लेकिन उसे बेचना मुश्किल हो गया। सिर्फ 20 क्विंटल बीज ही बेच पाए। हालांकि, मनोबल नहीं टूटने दिया और अपने काम में लगे रहे। गुणवत्ता पर ध्यान देते रहे। बाजार को समझा। इसी का नतीजा है कि आज 4000 क्विंटल बीज बेचते हैं। सारा बीज मार्च में ही बिक जाता है। पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और यूपी के करीब 25 जिलों में हमारे यहां से बीज जा रहा है। हरियाणा में तो लोग मेरठ वाला बीज कहकर ही इसे बेचते हैं। आज हमारा टर्नओवर करीब चार करोड़ रुपये का है।
बासमती के बाद गेहूं के बीज
पिछले दो साल से विनोद सैनी ने गेहूं का बीज तैयार करना भी शुरू किया है। इसमें भी पहले साल बेचने की समस्या आई। पहले साल 500 क्विंटल बीज तैयार किया था, जिसमें से सिर्फ 100 क्विंटल बीज ही बिक पाया। लेकिन, दूसरे साल 2000 क्विंटल गेहूं का बीज तैयार किया और सारा एक ही डिस्ट्रीब्यूटर ने ले लिया। यह वही डिस्ट्रीब्यूटर था, जिसने पहले साल थोड़ा बीज खरीदा था। उसकी गुणवत्ता और नतीजे देखकर दूसरे साल सारा बीज खरीद लिया। सैनी बताते हैं, अब गेहूं के बीज का उत्पादन भी बढ़ा रहे हैं। हमने अपने खेतों में गेहूं की 164 किस्में लगाई हैं। इससे पता चलता है कि कौन-सी किस्म से कैसी फसल मिलेगी। जैसे- किस किस्म में फसल लंबी या छोटी है, किसका उत्पादन अधिक है, कौन-सी किस्म के पौधे गिर जाते हैं, या फिर कौन-सी किस्म मजबूती से खड़ी रहती है।
बीज बेचने में अधिक मुनाफा
धान की साधारण उपज बेचने के मुकाबले बीज बेचने पर किसान को 200 रुपये प्रति क्विंटल अधिक दाम मिलते हैं। इस तरह एक एकड़ के उत्पादन से किसान को कम से कम चार हजार रुपये अधिक मिल रहे हैं। सैनी कहते हैं, सभी किसानों के बेटों से हम यही कहेंगे कि वो कोशिश करें कि पढ़-लिखकर किसी के यहां नौकर बनने के बजाय उद्यमी बनकर दूसरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करें। एक समय मैं किसी के यहां नौकरी करता था, आज हमारे यहां 25 परिवारों को रोजगार मिल रहा है। दिहाड़ी मजदूरों की संख्या तो 100 के करीब है।
बीज उत्पादन के इस कारोबार में दर्जनों लोगों को रोजगार भी मिला है।
- फोटो : गांव जंक्शन
बासमती का निर्यात भी किया
विनोद सैनी बताते हैं, बासमती का निर्यात भी किया है। यूपी सरकार की निर्यात नीति के तहत एफपीओ को बढ़ावा देने के लिए निर्यात में भी मदद मिलती है। इसके तहत हमने 50 हेक्टेयर का क्लस्टर बनाया। उसमें जो उत्पादन हुआ, उसका एक तिहाई हमने निर्यातक से एमओयू करके विदेश भेजा। हमने कभी मानकों से समझौता नहीं किया। इसकी वजह से शुरू में संघर्ष भले करना पड़ा, लेकिन आज हमें बाजार नहीं ढूंढना पड़ता। लोग खुद हमसे संपर्क करते हैं। सैनी बताते हैं, हमारा एफपीओ भी बन चुका है। इससे 813 किसान जुड़े हैं। एफपीओ बनने के बाद किसानों को घर बैठे ट्रेडिंग की सुविधा मिल रही है। एफपीओ के पास मंडी का लाइसेंस भी है। किसान अब यहीं अपने बीज बेच सकते हैं। इससे किसानों का भाड़ा, टोल, समय सब बच रहा है।
ऐसे शुरू कर सकते हैं बीज का व्यापार
यदि कोई बीज का व्यापार शुरू करना चाहता है तो उसे सबसे पहले फर्म का रजिस्ट्रेशन कराना होता है। यह रजिस्ट्रेशन उत्तर प्रदेश बीज प्रमाणीकरण संस्था से होता है। फिर, लक्ष्य तय किया जाता है कि कितना बीज तैयार करना है, कितनी किस्म का बीज तैयार करना है। यह देखना होता है कि ब्रीडर सीड यानी जिस बीज से आगे बीज तैयार किया जाना है, वह कहां से लाएंगे। आईसीएआर की विभिन्न संस्थाएं या कृषि विश्वविद्यालयों से बीज मिल सकता है। ब्रीडर बीज लाने के बाद उसे बुवाई करके फाउंडेशन बीज तैयार किया जाता है, जो पहली फसल आती है उससे फाउंडेशन बीज मिलता है। इसे किसानों को देकर बुवाई कराई जाती है। फिर, जो फसल आती है उसका बीज बेचा जाता है। किसानों को बीज देते समय उनसे एग्रीमेंट किया जाता है कि फसल तैयार होने पर वो बीज हमको ही देंगे। किसानों से बीज मिलने के बाद उसकी प्रोसेसिंग की जाती है। प्रोसेसिंग के लिए सबसे पहले बीज प्रमाणीकरण संस्था को अवगत कराते हैं कि किस किसान से, किस किस्म का कितना बीज लिया गया। उन्हें यह भी बताते हैं कि किस तिथि से बीज की प्रोसेसिंग शुरू करेंगे। फिर, वहां से अधिकारी नियुक्त किया जाता है। प्लांट में अधिकारी की मौजूदगी में प्रोसेसिंग शुरू होती है। इसके बाद, सैंपल लैब टेस्टिंग के लिए जाते हैं। उसके परिणाम आने के बाद वह जिस कैटेगरी में पास होता उसे बाजार में देते हैं।
ऐसे होती है बीज की प्रोसेसिंग
बीजों की प्रोसेसिंग का काम मशीनों से किया जाता है। सबसे पहले मशीन बीज में से कूड़ा-करकट हटाती है। फिर, दूसरी मशीन बारीक यानी हल्के दाने को अलग करती है। तीसरी मशीन बीज की लंबाई के हिसाब से छंटाई करती है। इसमें छोटे और बड़े दाने अलग हो जाते हैं।
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