विडंबना: पलायन की पीड़ा से अभिशप्त मध्य प्रदेश का एक गांव, जो अब हो गया वीरान
हिमांशु मिश्र, जबलपुर
Published by: Umashankar Mishra
Updated Thu, 20 Jun 2024 07:59 PM IST
सार
कुछ लोग दो वक्त की रोटी के लिए घर छोड़कर शहरों की तरफ जाने को मजबूर हैं, तो कुछ लोग नई उम्मीदें लेकर गांवों की दहलीज पार कर रहे हैं। लेकिन, हम जिस गांव से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, वहां पलायन का कारण कुछ ऐसा है, जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
जबलपुर के खरिका डूंडी गांव में न सड़क पहुंची और न पीने के पानी की व्यवस्था है।
- फोटो : हिमांशु मिश्र
नर्मदा नदी के उत्तर में पहाड़ियों से घिरे चट्टानी बेसिन में झीलों और मंदिरों के बीच मध्य प्रदेश का जबलपुर जिला है। यहीं पर उच्च न्यायालय है, जहां लोगों को न्याय मिलता है। मगर, दुर्भाग्य है कि जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर एक गांव के लोगों को आज भी न्याय का इंतजार है। यह गांव है खिरका डूंडी। बच्चे गांव की गलियों में खेलते थे तो बुजुर्गों की चौपाल लगा करती थी। महिलाएं मंदिर में हर रोज जुटती थीं और भजन-कीर्तन करती थीं। लेकिन, आज यह गांव वीरान हो चुका है। जिस घर पर नजर पड़ेगी, वहां आपको ताले लटके नजर आते हैं। कई घर तो खंडहर बन चुके हैं।
पलायन को मजबूर लोग
खिरका डूंडी गांव के ज्यादातर लोग अपना घर और जमीन छोड़कर दूसरे गांवों में बसने लगे हैं। पहले गांव में 250 से ज्यादा परिवार थे, जिनकी संख्या घटकर अब 10 से 15 परिवार ही बचे हैं। उन्हें भी मजबूरी में यहां रहना पड़ रहा है। बाकी लोगों ने अपना नया ठिकाना ढूंढ लिया है। इसका कारण हैरान करने वाला है। आजादी के 75 साल तक यह गांव विकास की राह देखता रहा।
गांव तक पहुंचने के लिए न सड़क है, न पीने को साफ पानी उपलब्ध है। इस गांव के युवा दिवाकर बताते हैं, करीब दो किलोमीटर पैदल चलकर इस गांव में पहुंचा जा सकता है। खेतों की पगडंडियों से होकर गांव तक आना पड़ता है। बारिश के समय तो और भी मुश्किल हो जाती है। बारिश के मौसम में लोगों का घर से निकलना भी मुश्किल हो जाता है।
अगर बारिश के समय गांव का कोई सदस्य बीमार पड़ता है तो उसे खाट पर लादकर चार लोग करीब दो किलोमीटर तक पैदल लेकर जाते हैं और फिर अस्पताल पहुंचाया जाता है। 15 साल के शिवम कहते हैं, गांव में सिर्फ आठ घंटे लाइट आती है। रात में वह भी नहीं मिलती।
स्कूल नहीं जाते बच्चे
गांव में पांचवीं कक्षा तक प्राथमिक स्कूल है। स्कूल में बच्चों का नामांकन भी है और एक शिक्षक भी हैं। उन्हीं के कंधों पर स्कूल के सभी बच्चों की जिम्मेदारी है। बच्चे स्कूल जाते हैं तो सिर्फ मध्याह्न भोजन के लिए। न बच्चों को गिनती आती है और न ही वर्णमाला। हालांकि, स्कूल के शिक्षक दावा करते हैं कि वह पूरी लगन से बच्चों को पढ़ाते हैं।
बगल में सोया बेटा, नींद में ही मौत के मुंह में समा गया
करीब 52 साल की बुजुर्ग महिला अपना दर्द बयां करती हैं। दो साल पहले उनका 24 साल का बेटा उनके बगल में सोया था। कच्चे मकान की छत बारिश के चलते ढह गई। बेटे के ऊपर मिट्टी गिर गई और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। बुजुर्ग महिला कहती हैं, हम क्या कर सकते थे। बेटा नींद में ही मर गया। न तो सरकार से मदद मिली न किसी ने कुछ पूछा।
बारिश में बाढ़ और गर्मी के समय सूखा
खरिका डूंडी गांव की रहने वाली करीब 70 वर्षीय फुलझरिया बताती हैं, गांव से सटा एक डैम है। बारिश के समय डैम का पानी गांव में भर जाता है। न सड़क है, न पीने का पानी और न ही बिजली आती है। गर्मी में डैम का पानी सूख जाता है, तो बारिश में मुश्किल बढ़ जाती है। एक हैंडपंप है, जो अक्सर खराब हो जाता है।
कई बार प्रधान से लेकर अफसरों तक से इसकी शिकायत की, लेकिन कोई नहीं सुनता। वहीं, 69 वर्षीय रामशरण को लकवा है। कच्चे घर के गलियारे में बैठे रामशरण बताते हैं, मेरे पास पैसे नहीं है कि इलाज कराएं। आधार कार्ड तक नहीं बना है। अफसरों के पास जाते हैं, तो वो भगा देते हैं। न राशन मिलता है और न ही किसी योजना का लाभ।
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