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Onion Politics How Did The Ban On Onion Export In Maharashtra Make The Nda Cry
Maharashtra: क्या प्याज किसानों ने की अपने वोट से चोट, प्याज उत्पादक क्षेत्रों में एनडीए को क्यों मिली शिकस्त?
डॉ. उमाशंकर मिश्र
Published by: Umashankar Mishra
Updated Wed, 05 Jun 2024 04:53 PM IST
सार
महाराष्ट्र में प्याज उत्पादन के गढ़ नासिक और डिंडोरी निर्वाचन क्षेत्रों में एनडीए उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है। निर्यात पर बार-बार लगने वाली रोक से महाराष्ट्र में प्याज किसानों की आंखों में आंसू थे, जिसकी कीमत राज्य की डिंडोरी और नासिक लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने अपने वोट की चोट से वसूली है।
महाराष्ट्र के लासलगांव में स्थित प्याज की मंडी।
- फोटो : गांव जंक्शन
महाराष्ट्र में प्याज उत्पादन के गढ़ नासिक और डिंडोरी निर्वाचन क्षेत्रों में एनडीए उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है। इन दोनों सीटों पर एनडीए उम्मीदवारों की हार के पीछे प्याज किसानों की नाराजगी को जिम्मेदार माना जा रहा है। महाराष्ट्र के करीब छह लोकसभा क्षेत्रों में किसानों के लिए नकदी फसल के रूप में प्याज की अहम भूमिका है। नासिक और डिंडोरी के अलावा अहमदनगर, शिरुर, बीड और औरंगाबाद में भी प्याज एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत प्याज की खेती में एक वैश्विक दिग्गज और दुनियाभर में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसका एक महत्वपूर्ण केंद्र महाराष्ट्र में है और राज्य के कुल प्याज उत्पादन का 10 प्रतिशत नासिक जिले से आता है। लेकिन, प्याज निर्यात पर बार-बार लगने वाली रोक से किसान काफी नाराज थे।
क्या एनडीए को भारी पड़ा प्याज किसानों का गुस्सा?
महाराष्ट्र की डिंडोरी लोकसभा सीट हारना तो बीजेपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। डिंडोरी लोकसभा सीट पर एनसीपी (एसपी) के भास्कर भगारे ने मौजूदा सांसद और बीजेपी नेता भारती पवार को 1,13,199 मतों से हराया है। भगारे को कुल 5,77,339 वोट मिले, जबकि भारती पवार को महज 464140 मत प्राप्त हुए। भारती पवार पिछली सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री के पद पर रही चुकी हैं।
वहीं, नासिक सीट पर उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के उम्मीदवार राजाभाऊ वाजे ने एनडीए के सहयोगी दल सीएम एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के मौजूदा सांसद हेमंत गोडसे को 1, 62001 मतों से पराजित किया है। हेमंत गोडसे को 4,54,728 वोट मिले, जबकि राजाभाऊ वाजे को 6,16,729 वोट मिले हैं।
भारती पवार को प्याज पर सरकार द्वारा लगाए गए हालिया निर्यात प्रतिबंधों से परेशान प्याज किसानों के बढ़ते गुस्से का सामना करना पड़ रहा था। इस कारण प्याज उत्पादन के प्रमुख केंद्र नासिक और डिंडोरी निर्वाचन क्षेत्रों में किसानों और कारोबारियों की सरकार के साथ तनातनी चल रही थी और काफी असंतोष के बीच उन्होंने मतदान किया।
भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के उम्मीदवार गोडसे को भी प्याज की कीमतों पर सरकार की नीति पर सवालों एवं किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा था। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेन्द्र फड़णवीस भी प्याज उत्पादकों को मनाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे थे, लेकिन ये तमाम कोशिशें अंततः कामयाब नहीं हो सकीं।
प्याज निर्यात पर लगने वाले प्रतिबंधों से थी नाराजगी
इस वर्ष मई महीने की शुरुआत में, केंद्र ने चुनाव से पहले प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिया था, लेकिन न्यूनतम निर्यात मूल्य 550 डॉलर प्रति टन और 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क निर्धारित करके आउटबाउंड शिपमेंट के मुक्त प्रवाह को रोक दिया गया। इससे पहले, उच्च खाद्य मुद्रास्फीति और आपूर्ति की कमी के कारण दिसंबर 2023 में प्रतिबंध लगाया गया था।
उल्लेखनीय है कि पिछले पांच वर्षों में, 14 महीने से अधिक समय तक प्याज पर निर्यात प्रतिबंध लगा रहा है। प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध से किसान, निर्यातक, उत्पादक, मजदूर और पूरा कृषि बाजार प्रभावित हुआ, जिसने कथित तौर पर सभी को प्रभावित करने वाले नाजुक संतुलन को बिगाड़ दिया।
नासिक छह विधानसभा क्षेत्रों वाला एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र रहा है और लासलगांव में देश की सबसे बड़ी प्याज मंडियों में से एक है, जो इस सीजन में प्याज निर्यात प्रतिबंध से बुरी तरह प्रभावित हुआ था और सरकार ने कथित तौर पर अनुरोधों की अनदेखी की, जिससे कई किसानों और निर्यातकों को भारी नुकसान हुआ।
प्याज
- फोटो : गांव जंक्शन
किसानों की आमदनी और आजीविका पर असर
लासलगांव में एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी वाले नासिक में प्याज पर निर्यात प्रतिबंधों के कारण किसानों की आमदनी और आजीविका पर असर पड़ा है। प्याज उत्पादकों का कहना है कि लगातार निर्यात प्रतिबंधों के कारण उन्हें भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, जिससे उन्हें आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हर बार जब घरेलू कीमतें बढ़ती हैं, तो निर्यात रोक दिया जाता है या फिर घरेलू आपूर्ति एवं दामों को नियंत्रित रखने के लिए निर्यात शुल्क बढ़ा दिया जाता है। दूसरी ओर, किसानों की शिकायत है कि जब कीमतें गिरती हैं, तो प्रभावी कदम नहीं उठाए जाने से उन्हें अपनी फसल 50 पैसे प्रति किलो से भी कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
अनियमित नीति ने बरपाया कहर
महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक किसान संगठन के अध्यक्ष भरत दिघोले कहते हैं, प्याज पर सरकार की अनियमित नीति ने अर्थव्यवस्था पर कहर बरपाया है और नासिक के किसानों को तबाह कर दिया है। जल्दबाजी में किए गए फैसलों से भारत को विदेशों में अपना बाजार खोना पड़ रहा है, जिसका अंतिम बोझ किसानों पर पड़ रहा है।
दिघोले कहते हैं, सरकार प्याज उपभोक्ताओं, जिनकी संख्या अधिक है, को लेकर चिंतित रहती है, क्योंकि उन्हें डर रहता है कि ऊंची कीमतें चुनाव को प्रभावित कर सकती हैं। वह कहते हैं, प्याज किसान संख्या में कम होने के बावजूद, अपनी आवाज नीति-नियंताओं तक पहुंचाने और कई निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त शक्ति रखते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नासिक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो से पहले, प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष भरत दिघोले को घर पर रहने का नोटिस दिया गया था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि दिघोले पीएम मोदी के दौरे के दौरान प्याज की कीमतों को लेकर आंदोलन न कर सकें।
प्याज किसानों, कारोबारियों के मुद्दे को हल्के में लिया गया
प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष भरत दिघोले ने कहा है कि प्याज की कीमतों के मुद्दे को सत्तारूढ़ गठबंधन ने बहुत हल्के में लिया। किसानों ने किसी भावनात्मक मुद्दे पर पड़ने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को प्रमुखता देने का फैसला किया। दिघोले और क्षेत्र के अन्य प्याज उत्पादकों ने कहा है कि यह केवल प्याज पर निर्यात प्रतिबंधों के कारण हुआ है, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
प्याज की खुदरा कीमतों में संभावित वृद्धि से चिंतित केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस फैसले के बाद प्याज की कीमतों में लगातार गिरावट देखी गई। इस बीच, सूखे ने उत्पादन को प्रभावित किया, जिससे प्याज उत्पादकों की चिंताएं दोगुनी हो गईं।
चुनाव नजदीक आने पर केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात की अनुमति देकर किसानों के गुस्से को कम करने की कोशिश की। लेकिन, 550 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) और 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क की दोहरी मार के कारण केंद्र किसानों के गुस्से को शांत नहीं कर सका।
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