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मिसाल: शहर की कमाई पर भारी चाक, नौकरी से अधिक गांव में मिट्टी के बर्तनों से हो रही कमाई

शैलेश अरोड़ा, लखनऊ Published by: Shailesh Arora Updated Sat, 18 Nov 2023 08:24 PM IST
सार

लखनऊ के कासिमपुर गांव के राधेश्याम नौकरी करने शहर गए, पर वहां डिलीवरी बॉय का काम रास नहीं आया। गांव में अब मिट्टी के बर्तनों से उन्हें नौकरी से अधिक कमाई हो रही है।

बिजली से चलने वाले चाक पर कुल्हड़ बनाते राधेश्याम
बिजली से चलने वाले चाक पर कुल्हड़ बनाते राधेश्याम - फोटो : गांव जंक्शन

विस्तार
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गांव के दूसरे लड़कों की तरह नौकरी की तलाश में 20 वर्षीय राधेश्याम घर छोड़कर शहर गए थे। लखनऊ के गोसाईगंज में स्थित कासिमपुर गांव के निवासी शहर जाकर फूड डिलीवरी ब्वॉय का काम करने लगे। इसके साथ ही उनकी स्नातक की पढ़ाई भी चल रही थी। फूड डिलीवरी करके महीने में 12-15 हजार रुपये बच जाते। लेकिन, मन में यह बात घर कर गई थी कि इस काम में भला कितना आगे बढ़ पाएंगे।

राधेश्याम ने सोचा कि अगर गांव में रहकर अपना ही कुछ काम किया जाए, तो नौकरी करने शहन नहीं जाना होगा। उन्होंने अपने पुश्तैनी कुम्हार के काम को कुछ आधुनिक और नए तरीके से करने का फैसला कर लिया। यहीं से शुरू होती है राधेश्याम के जीवन की नई पारी।

चाक से हुई नई शुरुआत
शहर में राधेश्याम ने देखा कि लोगों को बड़े रेस्टोरेंट में भी मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पीना अच्छा लगता है। सर्दी  में मिट्टी के डिजाइनर गिलास में केसरिया दूध भी खूब बिकता है। यहीं से ख्याल आया कि अब वह भी मिट्टी के डिजाइनर उत्पाद बनाएंगे, जिनकी बाजार में मांग हमेशा होती है। वर्ष 2021 में राधेश्याम आठ हजार रुपये का चाक लेकर आए और चाय के कुल्हड़ बनाने शुरू किए।

तब एक दिन में करीब एक हजार कुल्हड़ बनते थे। पिता, मां और पत्नी भी काम में हाथ बंटाते। एक कुल्हड़ की लागत करीब 40 पैसे आती थी, जो 1.10 रुपये में बिक जाता और लगभग 700 रुपये रोज बच जाते। महीने के करीब 21 हजार रुपये की आमदनी होने लगी। डिलीवरी बॉय के काम से वह जितना कमाते थे, उससे अधिक कमाने लगे।
अपने यहां तैयार किए चाय के डिजाइनर कुल्हड़ दिखाते हुए राधेश्याम
अपने यहां तैयार किए चाय के डिजाइनर कुल्हड़ दिखाते हुए राधेश्याम - फोटो : गांव जंक्शन

मशीन से बना रहे डिजाइनर कुल्हड़
राधेश्याम की सोच काम को आगे बढ़ाने की थी। वह मोबाइल फोन पर जानकारी जुटाने लगे। इसी से उन्हें मशीन पर कुल्हड़ बनाने का आईडिया मिला। मई 2022 में, राधेश्याम ने खुर्जा जाकर बिजली से चलने वाली मशीन खरीदी। यह मशीन करीब सात हजार रुपये की मिली। इसके बाद कुल्हड़ बनाने के लिए चार हजार सांचे बनवाए, जो करीब एक लाख रुपये के पड़े।

बिजली से चलने वाली मशीन ने कुल्हड़ की लागत तो बढ़ा दी, लेकिन कुल्हड़ की फिनिशिंग अच्छी हो गई। अब एक कुल्हड़ करीब 70 पैसे में तैयार होने लगा। इसमें अलग-अलग डिजाइन मिलते हैं और कम समय में अधिक कुल्हड़ तैयार हो जाते हैं।
राधेश्याम के साथ उनके परिवार के अन्य सदस्य भी काम में हाथ बंटाते हैं
राधेश्याम के साथ उनके परिवार के अन्य सदस्य भी काम में हाथ बंटाते हैं - फोटो : गांव जंक्शन

डिजाइनर उत्पादों से ज्यादा फायदा
डिजाइनर कुल्हड़ डेढ़ रुपये में बिकने लगे। पहले एक कुल्हड़ पर जहां 70 पैसे का मुनाफा होता था, वहीं मशीन पर बने कुल्हड़ से 80 पैसे प्रति कुल्हड़ मुनाफा होने लगा। पहले जितने कुल्हड़ 7-8 घंटे में तैयार होते थे, अब 3 घंटे में बन जाते हैं। राधेश्याम ने बताया, पहले वह प्रतिदिन एक हजार कुल्हड़ बनाते थे।

लेकिन, अब हर दिन वह कम से कम 1500 कुल्हड़ बना रहे हैं।  एक दिन में करीब 1200 रुपये और महीने के 36 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। सर्दियों में दूध के कुल्हड़ का काम बढ़ाना है। उसमें मुनाफा अधिक है। इसकी लागत करीब 1.20 रुपये आती है, जो 3-4 रुपये में बिकता है।
राधेश्याम को जगह कम होने की वजह से दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है
राधेश्याम को जगह कम होने की वजह से दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है - फोटो : गांव जंक्शन

जगह छोटी, हौसला बड़ा
राधेश्याम को कुछ मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है। बरसात के दिनों में समस्या अधिक होती है। घर में जगह कम होने के कारण एक दिन में चाहकर भी एक सीमा से अधिक कुल्हड़ नहीं बनाते, क्योंकि सुखाने की जगह नहीं होती। हालांकि, बिजली वाली मशीन दिन में 4-5 हजार कुल्हड़ बन सकते हैं।

बाजार में कुल्हड़ की मांग भी है। पर, वह 1500 से अधिक कुल्हड़ नहीं बनाते। तालाब कम होने की वजह से चिकनी मिट्टी मिलने में कभी-कभी समस्या आती है। लेबर की भी समस्या है। हालांकि, वह यह बात अब अच्छी तरह समझ चुके हैं कि जितना शहर जाकर नौकरी से कमाएंगे, उससे अधिक अपने घर पर खुद का काम करके कमा सकते हैं।