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Jaago Ri Jaago A Campaign Which Along With Educating Girls Is Making Women Self Reliant
जागो री जागो : एक मुहिम, जो लड़कियों को शिक्षित करने के साथ महिलाओं को बना रही आत्मनिर्भर
शैलेश अरोड़ा, बाराबंकी
Published by: Shailesh Arora
Updated Tue, 14 Nov 2023 03:46 PM IST
सार
एक बुजुर्ग ने गांव में लड़कियों को शिक्षित करने के साथ-साथ महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की मुहिम छेड़ी है। अब कई गांवों की बेटियां पढ़ रही हैं और महिलाओं को रोजगार मिल रहा है।
इस मुहिम से जुड़कर 150 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिला है
- फोटो : गांव जंक्शन
रेखा के लिए कुछ महीने पहले तक बच्चों की पढ़ाई कराना भी मुश्किल था। लेकिन, अब हालात बदल चुके हैं। रेखा के बच्चों की स्कूल फीस समय पर जमा हो रही है। उनके नए कपड़े भी आ रहे हैं। रेखा 10-15 हजार रुपये कमा रही है। इसी तरह पहले हर महीने 1500 रुपये कमाने वाली पूनम वर्मा आज 3000 रुपये कमा रही है। पूनम की बेटी भी स्कूल जाने लगी है।
बाराबंकी के नानमऊ गांव में रहने वाली रेखा और पूनम की तरह ही करीब 150 महिलाओं को स्वावलंबन के पंख लगे हैं। उनके जीवन में बदलाव आया है 'जागो री जागो' मुहिम से। जिसे शुरु किया है एक 72 साल के बुजुर्ग चंद्रप्रकाश ने। जिन्हें लोग 'दादाजी' कहते हैं।
यहां काम करके 15 हजार रुपये तक कमा रहीं महिलाएं
- फोटो : गांव जंक्शन
पढ़ाई के साथ सिलाई का काम
नानमऊ गांव में रहने वाली रोशनी बानो अपनी पढ़ाई करने के साथ इस केंद्र पर सिलाई का काम करती हैं, महीने में करीब चार हजार रुपये कमाकर वह कॉलेज और कोचिंग की फीस जमा करती हैं। टीचर बनने का ख्वाब देखने वाली रोशनी कहती हैं, जब से दादाजी ने गांव में यह मुहिम शुरु की बहुत बदलाव आया है। महिलाएं आत्मनिर्भर हुई तो पति-पत्नी के झगड़े कम हो गए।
अपने ही गांव में महिलाओं को मिल रहा रोजगार
केंद्रीय खादी और ग्रामोद्योग आयोग से विकास अधिकारी के पद से वर्ष 2012 में रिटायर चंद्र प्रकाश ने इसी साल जुलाई में जागो री जागो मुहिम के तहत बाराबंकी के नानमऊ गांव में एक केंद्र शुरू किया। यहां महिलाओं को स्टोल, रुमाल की सिलाई, उस पर लेस लगाने का काम दिया जाता है। इससे यहां महिलाएं तीन हजार से लेकर 15 हजार रुपये प्रतिमाह तक आमदनी कर रही हैं। चंद्र प्रकाश बताते हैं, इन महिलाओं को काम मिले इसके लिए उन्होंने स्टोल, रुमाल एक्सपोर्ट करने वाली एक फर्म से संपर्क किया।
नानमऊ और मंजीठा केंद्र पर रोज शाम को दो-दो घंटे कक्षाएं चलती हैं
- फोटो : गांव जंक्शन
बेटियों की शिक्षा से हुई शुरुआत, अब स्वावलंबन पर जोर
दादाजी ने 2013 में 'जागो री जागो' मुहिम शुरू की। चंद्र प्रकाश बताते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बेटियों को कम पढ़ाते हैं। महिलाएं कमजोर हैं, क्योंकि आर्थिक स्वावलंबन नहीं। हमने सबसे पहले 2013 में बेटियों को नि:शुल्क पढ़ाना शुरू किया। शुरू में गांव में घूम-घूमकर कक्षाएं चलाई। फिर 2016 में सोचा की किसी एक गांव को चुनकर काम किया जाए। तब मंजीठा गांव में प्रधान से बात करके पंचायत भवन में एक केंद्र शुरू किया।
यहां बेटियों को नि:शुल्क पढ़ाया जाता है, स्टेशनरी दी जाती है। दोनों केंद्रों पर शाम को 2 घंटे कक्षाएं चलती हैं। कक्षा 8 के बाद पढ़ाई के लिए गांव में स्कूल नहीं है। इनका दाखिला शहर के सरकारी विद्यालय में कराते हैं। दो बेटियों पर एक साइकिल देते हैं जिससे उन्हें आने जाने में समस्या न हो। ऐसा ही केंद्र नानमऊ गांव में शुरू किया है। अब तक 400 लड़कियां सेंटर से जुड़ चुकी हैं।
यहां कोई छात्रा खेल मंत्री तो किसी के पास शिकायत निवारण विभाग की जिम्मेदारी
- फोटो : गांव जंक्शन
छात्राओं को बनाया मंत्री, बांटे विभाग
इन केंद्र में प्रतिवर्ष 100 छात्राओं का दाखिला किया जाता है। यहां छात्राओं को अलग-अलग मंत्रालय भी बांटे जाते हैं। नानमऊ केंद्र में पढ़ने वाली कक्षा 5 की छात्रा अनन्या पटेल को खेल मंत्री बनाया गया है। अनन्या का काम है कि जब खेलकूद होगा तो उससे जुड़ा सामान वह अन्य छात्राओं को देंगी।
इसी तरह कक्षा 7 की छात्रा शगुन शिकायत निवारण मंत्री है, जिनकी जिम्मेदारी छात्राओं की किसी भी शिकायत को शिक्षकों तक पहुंचाना और निस्तारण कराना है। छात्रा संध्या सिरोही जो शिक्षा मंत्री भी हैं कि यहां मस्ती भी होती, पढ़ाई भी। इसलिए ज्यादा अच्छा लगता है। मंजीठा केंद्र में कक्षा 6 की छात्रा निदा ने बताया, मैं 5 साल से यहां पढ़ने आ रही हूं। साथ ही करीब के ही उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती हैं। स्कूल से मिला होमवर्क भी केंद्र पर करा दिया जाता है।
गांव की ही लड़कियां अपनी पढ़ाई करने के साथ यहां बच्चों को पढ़ाने आती हैं
- फोटो : गांव जंक्शन
शिक्षिकाओं में भी उत्साह
इन केंद्रों पर पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं का उत्साह भी देखते ही बनता है। राजिया 7 साल से मंजीठा में चलने वाले केंद्र पर पढ़ा रही हैं। हाल ही में राजिया ने एमएससी की पढ़ाई पूरी की है। अब कम्प्यूटर का प्रोफेशनल कोर्स कर रही हैं। राजिया कहती हैं, कम्प्यूटर सीख जाएंगे तो इन बच्चों को सिखाएंगे। यहां आने की वजह पैसा मिलना नहीं है। हमारे घर पर मेरे अलावा कोई पढ़ा लिखा नहीं है। दादाजी से बहुत कुछ सीखने को मिला। खुद में बदलावा आया है।
यहां पढ़ाने वाली शालिनी खुद एमए फर्स्ट सेमेस्टर की पढ़ाई भी कर रही हैं। कहती हैं कि हमारे गांव की कई लड़कियों को लोग नहीं पढ़ाते। हम उनके घर जाकर समझाते और यहां लाते, सरकारी स्कूल में दाखिला कराते हैं। यहां से जो आर्थिक सहयोग हमें मिलता है उसे हम अपनी पढ़ाई पर खर्च करते हैं। चंद्र प्रकाश की पोती प्रार्थना वर्मा जो लखनऊ विश्वविद्यालय में बीए फिलॉसफी की छात्रा है, हफ्ते में तीन दिन मंजीठा और नानमऊ में चल रहे इन सेंटर पर इंग्लिश पढ़ाती हैं। प्रार्थना कहती हैं, इन लड़कियों को पढ़ाकर अच्छा लगता है।
ऐसा मॉडल बनाया कि किसी से आर्थिक मदद नहीं लेनी पड़ती
- फोटो : गांव जंक्शन
पेंशन से करते हैं खर्च
चंद्र प्रकाश बताते हैं, इसके लिए हमें किसी से आर्थिक मदद नहीं लेनी पड़ती। बल्कि अपनी पेंशन से काम चल जाता है। इसके लिए मॉडल ही ऐसा बनाया है। रिटायरमेंट के बाद कुछ फंड मिले और पेंशन भी आ रही। तो बेटियों को पढ़ाने के लिए जो सेंटर शुरू किए वहां उसी से कुर्सी, स्टूल, ब्लैक बोर्ड और बाकी सामान ले आए।
अब बात आई शिक्षकों की तो उसके लिए इन्हीं गांव की उन बेटियों को जोड़ा जो खुद कॉलेज में पढ़ाई कर रहीं या कर चुकी हैं और इस सामाजिक कार्य से जुड़ना चाहती हैं। हालांकि इनको प्रतिमाह एक छोटी सी सहयोग राशि जरूर दी जाती है जिससे उनका अपना खर्च भी चलता रहे। हां अब इस काम को देखकर खुद ही कुछ लोग बेटियों के लिए साइकिल, स्टेशनरी या अन्य सामान देने आ जाते हैं।
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