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डिजिटल गांव: गांवों में लाइब्रेरी, मोबाइल पर क्लास, यूपी के इन गांवों में हाईटेक तरीके से हो रही पढ़ाई

शैलेश अरोड़ा, बुलंदशहर Published by: Shailesh Arora Updated Fri, 10 Nov 2023 12:32 PM IST
सार

शहरों की लाइब्रेरी में पढ़ाई और इंटरनेट का उपयोग करते लोगों का दिखना आम बात है। लेकिन, बुलंदशहर के गांवों-कस्बों में खुल रहीं लाइब्रेरियों और वहां इंटरनेट, एसी कमरे, न्यूजपेपर व मैगजीन की सुविधा मिलने से युवाओं के सपनों को उड़ान मिल रही है।

गांवा में लाइब्रेरी खुलने से छात्र-छात्राओं को पढ़ाई में काफी राहत मिल रही है
गांवा में लाइब्रेरी खुलने से छात्र-छात्राओं को पढ़ाई में काफी राहत मिल रही है - फोटो : गांव जंक्शन

विस्तार
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कक्षा 12 में पढ़ने वाले समीर और कक्षा 11 में पढ़ने वाली श्वेता हर रोज स्कूल से आने के बाद पढ़ाई के लिए घर से निकल जाते हैं। ये कहीं ट्यूशन पढ़ने नहीं जाते, बल्कि दूसरे बच्चों की तरह ही ये दोनों गांव में खुली एक लाइब्रेरी में इकट्ठा पढ़ाई करते हैं।

इसलिए लाइब्रेरी में पढ़ना शुरू किया
मेडिकल में दाखिले के लिए नीट की तैयारी करने वाले बुलंदशहर के स्याना निवासी समीर बताते हैं, पिताजी ड्राइवर हैं। घर में चार भाई और एक बहन है। घर में पढ़ाई में दिक्कत आती है। इसलिए, लाइब्रेरी में शांति से पढ़ाई करने चले आते हैं।

पास के वैरा गांव में रहने वाली श्वेता बताती हैं, घर पर कोई अलग से कमरा नहीं है। शोरगुल के बीच ध्यान भी भटकता है। लाइब्रेरी में पूरा ध्यान पढ़ाई पर रहता है, क्योंकि यहां दूसरे बच्चे भी पढ़ाई कर रहे होते हैं। छात्रों के लाइब्रेरी में आकर पढ़ने का एक अन्य कारण घर में वाईफाई कनेक्शन नहीं होना भी है। लाइब्रेरी में तेज इंटरनेट मिलने से मोबाइल पर एजुकेशनल वीडियो देर तक देख सकते हैं।
 
बुलंदशहर में गांव की लाइब्रेरी में पढ़ते बच्चे।
बुलंदशहर में गांव की लाइब्रेरी में पढ़ते बच्चे। - फोटो : गांव जंक्शन डेस्क

प्रतिमाह 500-600 रुपये शुल्क
इन लाइब्रेरियों को चलाने वाले लोग गांव के आसपस के ही होते हैं, जो कमरों में एसी, इंटरनेट और न्यूजपेपर की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। इसके बदले में यहां पढ़ाने आने वाले बच्चों से 500-600 रुपये प्रतिमाह शुल्क वसूला जाता है। छात्रों को बैठने के लिए एक कुर्सी और मेज दी जाती है।

बीए में पढ़ाई के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे, बड्डा वाजिदपुर गांव निवासी पीनू ने बताया, हमारे पिता मजदूर हैं। गर्मी में घर में पढ़ने में दिक्कत होती है। यहां लाइब्रेरी में एसी लगा है। आसपास बाकी लोग भी पढ़ रहे होते हैं तो पढ़ाई अच्छी होती है। बुलंदशहर के स्याल में खुली एक लाइब्रेरी एक माह में ही फुल हो गई।

इस सोच के साथ शुरू की लाइब्रेरी
लाइब्रेरी संचालक रॉकी ने बताया, मैंने सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे गांव के बच्चों को भी फायदा मिले। यहां फीस काफी कम रखी गई है। कोई फीस नहीं दे सकता तो छूट भी देते हैं। यहां न्यूजपेपर, मैगजीन, प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़ी किताबें उपलब्ध करायी जाती हैं। इसी तरह, जिम चलाने वाले राहुल को जब पता चला कि गांव के बच्चों को पहले दूर की लाइब्रेरी में जाना पड़ता था तो उन्होंने गांव में ही एक लाइब्रेरी शुरू कर दी।
 
बनें सरकारी लाइब्रेरी
कई छात्र ऐसे हैं, जो 500-600 रुपये भी नहीं दे पाते। कक्षा 12 में पढ़ने वाले रोहित कहते हैं, हमने लाइब्रेरी में बात की तो उन्होंने 100 रुपये कम कर दिए, लेकिन बाकी फीस भी हम नहीं दे पाए। यदि निःशुल्क सरकारी लाइब्रेरी खुल जाएं तो सभी को लाभ होगा। बुलंदशहर में लगातार बढ़ रही लाइब्रेरियों से गांव के बच्चों की पढ़ाई बेहतर होने के साथ-साथ लोगों को कमाई का एक नया जरिया भी मिला है।