Home Nayi Bayaar Now The Story Of Development Will Be Written With The Village Atlas Is There An Atlas Of Your Village

नई बयार : अब गांव के एटलस से लिखी जाएगी विकास की इबारत, क्या आपके गांव का एटलस है?

गांव जंक्शन डेस्क, नई दिल्ली Published by: Umashankar Mishra Updated Tue, 14 Nov 2023 09:09 PM IST
सार

स्वास्थ्य, शिक्षा, तकनीक, रोजगार और प्रति व्यक्ति आय ग्रामीण विकास के मानक हो सकते हैं। लेकिन, 'विलेज एटलस' नहीं है तो आपका गांव तेज रफ्तार विकास की दौड़ में पिछड़ सकता है।

सांस्कृतिक विरासत और जैव विविधता को सुरक्षित बनाए रखने के लिए गोवा में उठाया गया कदम।
सांस्कृतिक विरासत और जैव विविधता को सुरक्षित बनाए रखने के लिए गोवा में उठाया गया कदम। - फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार
वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें

किसी इमारत को खड़ा करने से पहले उसका नक्शा तैयार किया जाता है, जिसमें उसका पूरा खाका दर्ज रहता है। गांवों की मैपिंग से विकास की इबारत का ब्लूप्रिंट तैयार किया जा रहा है। ड्रोन की मदद से गांवों की मैपिंग के बाद 'विलेज एटलस' ग्रामीण विकास का नया प्रतिमान बनकर उभरा है।

अपनी सांस्कृतिक विरासत और जैव विविधता को सुरक्षित एवं समृद्ध बनाए रखने के लिए गोवा सरकार ने कुछ समय पूर्व एक अनूठी पहल शुरू की है। राज्य सरकार की इस पहल के तहत गोवा के मायेम गांव को अपना 'विलेज एटलस' मिला है। इस तरह, मायेम देश का पहला गांव बन गया है, जिसके पास अपना 'विलेज एटलस' है।   

पहले जानें एटलस 
एटलस मानचित्रों के संग्रह को कहते हैं, जो एक पुस्तक के रूप में होता है। कई प्रकार के विशिष्ट एटलस होते हैं- जैसे सड़क एटलस, और ऐतिहासिक एटलस। इसमें स्टार एटलस भी शामिल हैं, जो सितारों, ग्रहों और अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति के बारे में बताते हैं। सभी देशों और महाद्वीपों के मानचित्र के अलावा, वैश्विक एटलस देशों के बारे में कई तरह के रोचक तथ्य प्रदान करते हैं।

प्रमुख शहरों या रुचि के अन्य कई बिंदुओं को भी मानचित्रों में शामिल किया जा सकता है। जनसंख्या के आंकड़े, प्राकृतिक संसाधन, सांस्कृतिक एवं धार्मिक जानकारियां और राजनीतिक डेटा अक्सर एटलस में पाए जाते हैं। वन क्षेत्र, महासागर, राजमार्ग, वायुमार्ग, रेलमार्ग, जैव विविधता, जल संसाधन और पर्वतमालाएं भी एटलस में दर्शायी जाती हैं। 

गांव का पहला एटलस 
भारत में, गांव स्तर पर एटलस प्रचलन में नहीं रहे हैं। लेकिन, गोवा के मायेम गांव के पास अब अपना जैव विविधता एटलस है। यह 250 पेज का दस्तावेज है, जिसमें गांव की पुष्प और जैव विविधता का विवरण मानचित्रों पर दर्शाया गया है। गोवा में 191 ग्राम पंचायतों में जैव विविधता प्रबंधन समितियां हैं और राज्य सरकार गोवा के प्रत्येक गांव के लिए एक जैव विविधता एटलस बनाना चाहती है। यदि ऐसा हुआ तो गोवा अपने हर गांव के जैव विविधता एटलस वाला देश का पहला राज्य होगा।

किस काम आएगा एटलस 
एक सवाल उठता है कि मानचित्रों की किताब तैयार करने से भला किसी गांव को क्या लाभ हो सकता है! इस प्रश्न का जवाब गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत देते हैं। वह कहते हैं, जिन गांवों में पंजीकृत जैव विविधता एटलस हैं, उनके लिए भारी धनराशि का उपयोग किया जाना है।

प्रत्येक झील के रखरखाव और आसपास की जैव विविधता के अस्तित्व के लिए भारत सरकार 10 करोड़ रुपये दे रही है। मायेम का एटलस गांव की जैव विविधता प्रबंधन समिति द्वारा तैयार किए गए जैव विविधता रजिस्टर के आधार पर बनाया गया है।

किसी स्थान विशेष की जैव विविधता और सांस्कृतिक विरासत वहां की पहचान होती है। यह पहचान एटलस में दर्ज होने से गांव के सभी लोगों को इस बात का संज्ञान रहेगा कि उनकी अपनी विरासत कहां तक है। गांव का पूरा खाका एटलस पर होने से विकास की रूपरेखा बेहतर तरीके से तैयार हो सकेगी।

केंद्र सरकार की स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रोन से गांवों की मैपिंग इसका एक उदाहरण है, जिसमें गांवों में भूमि के रिकॉर्ड तैयार किए जा रहे हैं। सटीक भूमि रिकॉर्ड होने से भूमि विवादों से छुटकारा मिल सकता है। गांवों का एटलस होने से इस तरह के कई अन्य लाभ भी मिल सकते हैं। 

ग्रामीणों की भूमिका 
मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत कहते हैं, जैव विविधता मानचित्र तो तैयार कर लिया गया है, लेकिन ग्रामीण और आसपास के लोग ही इस जैव विविधता को संरक्षित कर सकते हैं। सावंत कहते हैं, गांवों की जैव विविधता उस समय खतरे में आ सकती है, जब कोई बाहरी आकर जमीन का टुकड़ा मांगता है।

ऐसा होने से धीरे-धीरे गांव अपनी पहचान खोने लगते हैं और फिर वहां न जैव विविधता बचती है, न झीलें और न ही स्थानीय संस्कृति अतिक्रमण से बच पाती है। तालाब पाटकर उन पर घर बना दिये जाते हैं और जैव विविधता को नष्ट कर दिया जाता है।

आगे वह कहते हैं, गांवों की भूमि पर अतिक्रमण और अन्य अवैध गतिविधियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने में तत्परता दिखानी होगी। संरक्षण का काम केवल पंच और सरपंच का नहीं है, बल्कि गांव के प्रत्येक व्यक्ति की इसमें भागीदारी होनी चाहिए।