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नई बयार : जम्मू-कश्मीर में बैंगनी क्रांति से किसान मालामाल, लैवेंडर के फूलों से महक रही भद्रवाह घाटी

उमाशंकर मिश्र, भद्रवाह Published by: Umashankar Mishra Updated Thu, 16 Nov 2023 07:17 PM IST
सार

जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले की भद्रवाह घाटी देश की लैवेंडर राजधानी बनकर उभरी है। लैंवेडर की खेती और सुगंधित तेल के उत्पादन से यहां के किसानों को लाखों रुपये की आमदनी हो रही है।

लैवेंडर के बैंगनी फूलों की खेती और सुगंधित तेल उत्पादन से बढ़ी किसानों की आमदनी।
लैवेंडर के बैंगनी फूलों की खेती और सुगंधित तेल उत्पादन से बढ़ी किसानों की आमदनी। - फोटो : गांव जंक्शन

विस्तार
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जम्मू से करीब 200 किलोमीटर दूर स्थित भद्रवाह के हरे-भरे पहाड़ों की घुमावदार सड़कों से गुजरते हुए लैवेंडर के खेत और डिस्टिलेशन इकाइयां, लैवेंडर की नर्सरी और लैवेंडर के खेतों में काम करते हुए महिलाएं तथा पुरुष दूर से ही दिख जाते हैं। जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में स्थित भद्रवाह के किसानों ने जलवायु परिवर्तन की आहट को समय रहते पहचान लिया है और वो करवट लेते मौसम के साथ तालमेल स्थापित करने में सफल हो रहे हैं। भद्रवाह के किसानों ने मक्का की खेती छोड़कर सुगंधित तेल उत्पादन में उपयोगी सगंध पौधों की खेती शुरू कर दी है। अब इन किसानों की जिंदगी लैवेंडर के फूलों से महक रही है।

परंपरागत खेती छोड़ लैवेंडर उगा रहे किसान
भद्रवाह के किसान आज लैवेंडर की खेती में अग्रणी बनकर उभरे हैं और 'बैंगनी क्रांति' की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के सुदूर गांव खिलानी के किसान भारतभूषण की सफलता इसका एक उदाहरण है। भारतभूषण ने वर्ष 2010 में लगभग दो कनाल भूमि में लैवेंडर की खेती शुरू की थी। लैवेंडर की खेती से लाभ हुआ तो उन्होंने मक्के की परंपरागत खेती छोड़ दी और पूरी कृषि भूमि को लैवेंडर के खेत में बदल दिया।

करीब दो दर्जन लोग आज उनके लैवेंडर के खेतों और नर्सरी में काम करते हैं। भारतभूषण बताते हैं, मुझे पारंपरिक मक्के की खेती की तुलना में लैवेंडर की खेती से कई गुना अधिक लाभ हुआ और धीरे-धीरे मैंने अपनी पूरी 10 कनाल कृषि भूमि को लैवेंडर फार्म में बदल दिया। डोडा जिले के अन्य किसान भी भारतभूषण से प्रेरित होकर लैवेंडर की खेती कर रहे हैं।
 
यह पहल किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ भारतीय सुगंध उद्योग वैश्विक मंच दिलाने से जुड़ी है।
यह पहल किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ भारतीय सुगंध उद्योग वैश्विक मंच दिलाने से जुड़ी है। - फोटो : गांव जंक्शन
जगह-जगह लगीं डिस्टिलरी इकाइयां
प्रति हेक्टेयर जमीन पर हर साल 40-60 लीटर लैवेंडर तेल का उत्पादन होता है। लैवेंडर तेल के लिए जम्मू-कश्मीर में विभिन्न स्थानों पर करीब 50 आसवन (डिस्टिलरी) इकाइयां लगायी गई हैं। यहां उत्पादित लैवेंडर तेल को इत्र और दवा उद्योगों द्वारा खरीद लिया जाता है। लैवेंडर की खेती से दूरदराज इलाकों में हजारों किसानों और युवा उद्यमियों को रोजगार मिला है।

इस पहल से महिला सशक्तीकरण को भी बल मिला है। कई महिला उद्यमियों ने लैवेंडर के तेल, हाइड्रोसोल और फूलों के मूल्यवर्द्धन के माध्यम से छोटे-बड़े व्यवसाय शुरू किये हैं। वहीं, भद्रवाह में वार्षिक 'लैवेंडर फेस्टिवल’ ने किसानों और अरोमा इंडस्ट्री से जुड़े उद्यमियों को एक मंच पर लाने का काम किया है। 

कई गुना बढ़ी आमदनी  
लैवेंडर तेल और फूल देश के विभिन्न खरीदारों को बेचे जाते हैं। कई किसान अब जेम (गवर्मेंट ई मार्केटप्लेस) पोर्टल पर अपने उत्पाद बेच रहे हैं। लैवेंडर फूलों की कीमत 1000 से 1500 रुपये प्रति किलो है। जबकि, लैवेंडर ऑयल करीब 08 से 10 हजार प्रति लीटर की दर से बिक जाता है। लैवेंडर किसानों की आय पहले 40 हजार रुपये से 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर थी, जो बढ़कर 3.5 लाख रुपये से छह लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक हो गई है। 
 
जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर की खेती और इसके प्रसंस्करण से लोगों रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर की खेती और इसके प्रसंस्करण से लोगों रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। - फोटो : गांव जंक्शन
अरोमा मिशन ने दिखाया रास्ता 
किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए फूलों की खेती और सुगंधित उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा देने के प्रयास केंद्र सरकार के अरोमा मिशन के तहत किया जा रहा है। किसानों की बेहतर आमदनी, फसलों की सुरक्षा और बंजर भूमि के समुचित उपयोग के माध्यम से जन-सशक्तीकरण को बढ़ावा देना मिशन के उद्देश्यों में शामिल है। लैवेंडर के बैंगनी फूलों के कारण जम्मू-कश्मीर में किसानों की इस सफलता को ‘बैंगनी क्रांति’ कहा जा रहा है। 

प्रशिक्षण और प्रोत्साहन से मिली मदद
सीएसआईआर-आईआईआईएम किसानों को फूलों की खेती और सुगंधित तेल उत्पादन के लिए प्रोत्साहित और प्रशिक्षित कर रहा है। सीएसआईआर-आईआईआईएम के वैज्ञानिकों ने लैवेंडर की खास किस्म आरआरएल-12 और इसके उत्पादन की तकनीक विकसित की है। यह किस्म जम्मू-कश्मीर और हिमालय के अन्य भागों की वर्षा आधारित स्थितियों के लिए उपयुक्त है।

वर्तमान में, इस किस्म को जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों, जिनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर की कुछ जगह शामिल हैं, में उगाया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के किसानों को 30 लाख से अधिक लैवेंडर के पौधे भी निशुल्क उपलब्ध कराए गए हैं। 

जैसी मिट्टी, वैसा पौधा 
भारतीय शोधकर्ताओं ने देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिए विशिष्ट प्रकार का लैवेंडर का पौधा विकसित किया है, जो वातावरण के साथ अनुकूलन स्थापित करने में सक्षम है और खराब मिट्टी में भी उग सकता है। कीटों और रोगों के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता रखने वाली लैवेंडर की विशिष्ट किस्म की खेती से किसानों को बेहतर उत्पादन 
मिल रहा है।