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हरित कृषि : खेती की नई पद्धति से कार्बन क्रेडिट अर्जित कर रहे किसान, जिसे बेचकर हो सकेगी आमदनी

संवाद Published by: Umashankar Mishra Updated Tue, 21 Nov 2023 07:47 PM IST
सार

भारत के किसान अब खेती में कार्बन उत्सर्जन कम करने की राह पर चल पड़े हैं और कार्बन क्रेडिट अर्जित करके अपनी आमदनी बढ़ाने की ओर बढ़ रहे हैं। हरित पद्धति से खेती करने पर इस क्षेत्र में सक्रिय एजेंसियां कार्बन क्रेडिट प्रदान करती हैं। कार्बन क्रेडिट के खरीदारों में आमतौर पर वो लोग और कंपनियां शामिल होते हैं, जो खुद कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।

हरित कृषि पद्धति अपनाकर कार्बन क्रेडिट अर्जित कर रहे हैं किसान।
हरित कृषि पद्धति अपनाकर कार्बन क्रेडिट अर्जित कर रहे हैं किसान। - फोटो : एजेंसी

विस्तार
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करनाल के किसान जीतेंद्र सिंह बड़े गर्व से अपने हरे-भरे धान के खेत में चावल का पौधा लेकर दिखाते हैं। वह कहते, इस पौधे की ऊंचाई और स्वास्थ्य को देखें - इस पर फूलों की संख्या अद्भुत है। भारत के मुख्य चावल और गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में शामिल हरियाणा के करनाल में जीतेंद्र सिंह का 80 एकड़ का फार्म एक नए बदलाव का केंद्र बनकर उभरा है। अत्यधिक रसायनों एवं पानी की खपत की खपत वाली पारंपरिक खेती के बजाय वह अपने खेतों में प्राकृतिक और जलवायु-अनुकूल तरीकों का उपयोग कर रहे हैं। 

धान उगाने के पारंपरिक तरीके को बदलने के लिए जिस बात ने जीतेंद्र सिंह सबसे अधिक प्रेरित किया है, उसके पीछे कृषि क्षेत्र में उभर रहे एक नवोदित आंदोलन से लाभ प्राप्त करने की संभावना छिपी है, जिसे कार्बन क्रेडिट कहा जाता है। इसके अंतर्गत टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाकर अतिरिक्त आय प्राप्त करने की संभावना बढ़ जाती है। सिंह कहते हैं, धान उत्पादन की यह नई पद्धति न केवल भूमि को उसकी उर्वरता वापस दिलाने में मदद कर रही है, बल्कि यह ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने में भी सहायक है। सिंह को उम्मीद है कि वह कार्बन बाजार से पैसे कमाने वाले भारतीय किसानों की पहली खेप का हिस्सा बन सकेंगे। 

कार्बन क्रेडिट स्टार्टअप

पिछले कुछ वर्षों में भारत में कई निजी कंपनियां उभरी हैं, जिन्होंने कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने के लिए सिंह जैसे किसानों के साथ गठजोड़ किया है। स्वैच्छिक कार्बन बाजार व्यवसायों, सरकारों, गैर-लाभकारी संगठनों, विश्वविद्यालयों, नगरपालिकाओं और व्यक्तिगत स्तर पर नियामक व्यवस्था के बाहर उत्सर्जन को करने में सक्षम बनाते हैं। देशभर में, ये स्टार्टअप उन किसानों का नामांकन कर रहे हैं, जो चावल, कपास और गन्ना जैसी फसलों की खेती करते हैं, जिनमें संसाधनों की खपत अधिक होती है।

किसानों को ऐसी प्रथाओं का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जो धरती के ताप को बढ़ाने वाली गैसों का कम उत्सर्जन करते हैं। अपने खेतों में, इन प्रयासों के जरिए कार्बन और मीथेन उत्सर्जन कम करने के लिए उन्हें क्रेडिट मिलता है। ग्रो इंडिगो बीज कंपनी महिको ग्रो और अमेरिका स्थित कृषि प्रौद्योगिकी कंपनी इंडिगो एजी का एक संयुक्त उद्यम है, जो फार्म-लिंक्ड कार्बन क्रेडिट का उत्पादन और बिक्री करता है।

अधिक पैदावार, कम उत्सर्जन
जीतेंद्र सिंह ने पहली बार 2019 में ग्रो-इंडिगो के एक प्रतिनिधि से कार्बन क्रेडिट कार्यक्रम के बारे में सुना, जो भारत में कृषि-आधारित कार्बन ऑफसेट परियोजनाओं के नए समर्थकों में से एक है। ग्रो इंडिगो के तकनीकी सहयोग से, सिंह ने अपने 20 एकड़ खेत में चावल की खेती के एक नए तरीके का परीक्षण किया। नर्सरी से पानी भरे खेतों में रोपाई करने के बजाय, उन्होंने सीधे मिट्टी में बीज बोने के लिए एक ड्रिल मशीन का उपयोग किया।

एक अन्य नई विधि - जिसे डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) कहा जाता है - 12-35% कम पानी का उपयोग करती है। इस पद्धति में, खेती के श्रम, बुवाई के समय और रासायनिक खरपतवारनाशी और उर्वरकों के उपयोग को कम करके खेती की लागत में कटौती करने में मदद मिलती है। सिंह कहते हैं, इस विधि से खेतों को पानी से भरने की जरूरत नहीं पड़ती और चावल की पैदावार बढ़ गई है - जिससे मीथेन उत्पादन भी कम होता है।

पानी से भरे धान के खेतों में बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित मीथेन एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) की तुलना में पृथ्वी की जलवायु को गर्म करने की अधिक क्षमता होती है। दुनियाभर में 3 अरब से अधिक लोगों के लिए मुख्य भोजन चावल की खेती वैश्विक 12% मीथेन उत्सर्जन और कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 1.5% के लिए जिम्मेदार है।

जीतेंद्र सिंह ने गेहूं की खेती के अपने पारंपरिक तरीके को भी बदल दिया, जो सर्दियों की एक प्रमुख फसल है। धान की कटाई के बाद, सिंह अब पराली को आग नहीं लगाते हैं। इसके बजाय, वह पराली को अपघटित करके खेत में फैला देते हैं, जिसमें बिना जुताई गेहूं के बीज सीधे बोये जाते हैं। यह नई "जीरो-टिल" विधि मिट्टी में कार्बन को रोकने में मदद करती है, जबकि मल्चिंग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।

ऐसे मिलता है कार्बन क्रेडिट
आमतौर पर, एक टन कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने या कम करने से एक कार्बन क्रेडिट उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए, जब सिंह अपनी चावल की खेती से मीथेन उत्सर्जन को कम करते हैं या मिट्टी की जुताई न करके उसमें से कार्बन को सोखने को बढ़ावा देते हैं, तो वह प्रति एकड़ एक कार्बन क्रेडिट उत्पन्न कर सकते हैं।

ग्रो इंडिगो की ओर से सैंपलिंग और उपग्रह निगरानी के उपयोग से एक निर्धारित अवधि में इस कार्बन भंडारण को मापा जाता है और फिर इसे तीसरे पक्ष के ऑडिटर द्वारा जांचा जाता है। एक बार सत्यापित होने और मान्यता प्राप्त रजिस्ट्री में दर्ज होने के बाद, यह कार्बन क्रेडिट उन खरीदारों द्वारा खरीदारी के लिए उपलब्ध हो जाते हैं, जो अपने स्वयं के कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करना चाहते हैं। कार्बन क्रेडिट के खरीदारों में, कॉरपोरेट कंपनियों से लेकर अन्य हितधारक शामिल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक बहुराष्ट्रीय कंपनी अपने कर्मचारियों की हवाई यात्रा के उत्सर्जन की भरपाई के लिए क्रेडिट खरीद सकती है।

ग्रो इंडिगो में कार्बन और टिकाऊ उपज के प्रमुख उमंग अग्रवाल कहते हैं, आमतौर पर, एक क्रेडिट की कीमत - इसकी गुणवत्ता के आधार पर - स्वैच्छिक कार्बन बाजार में 2 से 50 डॉलर के बीच होती है। अग्रवाल कहते हैं, सख्त कार्यप्रणाली अपनाए जाने से भारतीय कार्बन क्रेडिट को ऊंची कीमत मिल सकती है। इससे किसानों को भी लाभ हो सकता है और मौजूदा समय में कुछ कंपनियों द्वारा दी जाने वाली 35-45% हिस्सेदारी की तुलना में 75% राजस्व प्राप्त हो सकता है।